इजराइल-यहूदी बनाम फिलिस्तीन-इसलाम के टकराव का इतिहास तो कुछ दशकों का है. वह भी इंग्लैंड और उसके साथी देशों द्वारा थोपा हुआ या खड़ा किया गया. आज तमाम ईसाई बहुल गोरी चमड़ी वाले देश (अपवादों को छोड़ कर) इजराइल या यहूदियों के साथ खड़े नजर आ रहे हैं. ‘हमास’ के नाम पर फिलिस्तीनी आबादी के सम्पूर्ण संहार के खुले एलान के साथ इजराइल की खूनी बदले की जारी सैन्य कारवाई को समर्थन दे रहे हैं. मगर थोड़ा अतीत, जब इजराइल नामक देश का वजूद भी नहीं था, के पन्ने पलट लें, तो ईसाई देशों में यहूदियों के साथ कैसा सलूक हुआ था, याद आ जायेगा.

यहूदी समुदाय के प्रति उस नफरत और शत्रु भाव का इतिहास तो कम से कम दो हजार वर्ष पुराना है. फिलिस्तीन का और यहूदियों का इतिहास कम से कम तीन हजार साल पुराना है. जुडोइज्म (यहूदियों का धर्म), ईसाई और इसलाम तीनों रिश्ता फिलिस्तीन से रहा है. तीनों के लिए वह पवित्र स्थान है. यरूसलेम तीनो के लिए तीर्थ है.

ईसा मसीह का जन्म तो यहूदी परिवार में ही हुआ था. ईसा के नाम पर ईसाई धर्म के उदय के साथ ही ईसाइयों और यहूदियों का टकराव शुरू हो गया. जैसे जैसे ईसाई धर्म फैलता गया, यहूदी संख्या के साथ ताकत में भी कमजोर पड़ते गये. वे अपना धर्म छोड़ कर ईसाई बनने को तैयार नहीं थे, तो उनके उत्पीड़न का दौर शुरू हो गया. व्यापार और रोजगार की तलाश के अलावा यहूदी इस कारण भी वहां से निकल कर दूसरे देशों में बसते गए. जहां तक मैं जानता हूं, उनके पलायन में मुसलमानों की कोई भूमिका नहीं थी. बाद में तो इस्लाम और ईसाई टकराव शुरू हो गया, जो सदियों तक चलता रहा. अब भी जारी है. लेकिन यूरोपीय देशों में रह रहे यहूदियों के प्रति ईसाइयों की शाश्वत नफरत बीच बीच में उभरती रही. हिटलर ने उनको दुश्मन और जर्मनी की बर्बादी का कारण बताया और अनुमानतः साठ लाख यहूदियों की हत्या कर दी. दूसरा विश्व युद्ध जीत लेने के बाद इंग्लैंड ने यहूदी समुदाय नामक अपनी ‘बला’ टालने के लिए उनके लिए अपना अलग देश बनाने का भरोसा दिया. वादा निभाया भी.नया देश इजराइल बन गया, लेकिन फिलिस्तीनियों को ऊनके ही घरों से बेघर कर दिया दिया गया. तब से यह विवाद बना हुआ है, जो समय समय पर खूनी टकराव का रूप लेता रहा है.

जर्मनी सहित अन्य दशों में यहूदियों के साथ जो हुआ, वह मानव इतिहास में काले अध्याय के रूप में दर्ज है. लेकिन पश्चिमी देशों ने फिलिस्तीनियों के साथ जो किया, उसे क्या स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा? और अब इजराइल जो कर रहा है, उसे यहूदियों के साथ अतीत में जो हुआ, उसे याद करते हुए भूल जाना चाहिए?