हर नेता ऐसी कोशिश करता है - विरोधी नेता की किसी बात को अपने ढंग से पेश कर अपने हित में इस्तेमाल करना. निःसंदेह प्रधानमंत्री इस कला में माहिर हैं. मेरी समझ से श्रीमती सोनिया गांधी ने ऐसा कुछ नहीं कहा था, जिसे राष्ट्रपति का अपमान कहा जा सके. मगर चूंकि राष्ट्रपति आदिवासी समुदाय से हैं, तो मोदी जी ने इसे आदिवासी अपमान बना दिया!
राष्ट्रपति पद का लिहाज-सम्मान करते हुए भले ही कोई न बोले, मगर संसद में राष्ट्रपति का अभिभाषण- कोई अपवाद हो सकता है- बोरिंग होता ही है, यही राहुल गांधी ने कहा. आप राहुल विरोधी हैं, तो कुछ भी कह सकते हैं, लेकिन राष्ट्रपति का भाषण ऊबाऊ होता है, इसमें कोई संदेह है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के लिए ‘पुअर थिंग’ की टिप्पणी को ‘शाही परिवार’ का अहंकार बताया. पीएम मोदी ने कहा, ‘‘यह टिप्पणी देश के 10 करोड़ आदिवासियों का अपमान है’’ द्रौपदी मुर्मूजी, ओडिशा के जंगलों में आदिवासी परिवार से निकल कर यहां पहुंची हैं. उनकी मातृभाषा हिंदी नहीं है, वो उड़िया भाषा में पली-बढ़ी हैं. मातृभाषा ना होने के बाद उन्होंने बेहतरीन तरीके से सांसद को प्रेरित किया, भाषण दिया. ‘शाही परिवार’ के सदस्य ने कहा- आदिवासी बेटी ने बोरिंग भाषण दिया, दूसरी सदस्य तो इससे आगे एक कदम बढ़ गई, उन्होंने राष्ट्रपति जी को ‘पुअर थिंग’ कहा, गरीब कहा. और चीज कहा. थकी हुई कहा.’’ लंबे समय से मोदी जी ने इस परिवार को ‘शाही परिवार’ घोषित कर रखा है, इसलिए कि एक तो ‘शाही’ उर्दू शब्द है, दूसरे उसमें ‘मुगलिया’ गंध है! अतः वे ‘राजपरिवार’ नहीं बोलते, शायद प्राचीन ‘राजतंत्र’ में अब भी उनको गरिमा नजर आती हो!
सिर्फ आदिवासियों का क्यों, यदि राष्ट्रपति का अपमान है, तो 140 करोड़ भारतवासियों का अपमान है. एक महिला का अपमान है, तो देश की आधी आबादी का अपमान नहीं है?
मोदीजी भूल गये कि सोनिया गांधी की भी मातृभाषा हिंदी नहीं है, अंग्रेजी भी नहीं. फिर भी अंग्रेजी में उन्होंने जो भी कहा, उसमें श्रीमती मुर्मू के प्रति अपमान का कोई बोध नहीं है.
मेरी समझ से मोदी जी की मातृभाषा भी हिंदी नहीं है और उनकी अंग्रेजी भी खास नहीं है! इसलिए वे सोनिया गांधी के अंग्रेजी में कही बात का अर्थ ठीक ठीक नहीं समझ सके या समझने के बावजूद उसे मनमाना रंग दे दिया. अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक “बजट सत्र के पहले दिन मीडिया से मुखातिब होने के दौरान राष्ट्रपति मुर्मू के अभिभाषण पर सोनिया गांधी ने कहा- ‘झूठे वादे हैं. एक ही बात बार-बार दोहरा रही थीं.’ उन्होंने अंग्रेजी में यह भी कहा कि ‘बेचारी राष्ट्रपति भाषण के अंत तक बहुत थक गई थीं, मुश्किल से बोल पा रही थी…’
गौरतलब है कि अखबार (भास्कर) ने भी सोनिया गांधी के अंग्रेजी कथन का अनुवाद इस तरह किया- ‘यानी बेचारी राष्ट्रपति भाषण के अंत तक बहुत थक गई थीं, मुश्किल से बोल पा रही थी…’
कोई बताये- इसमें कोई अपमान का भाव है? मुझे तो इसमें सहानुभूति दिखी. किसी को किसी और का लिखा हुआ भाषण पढ़ने की बाध्यता हो, तो वह थकेगा नहीं? उस भाषण के कंटेंट की आलोचना सरकार की आलोचना होती है, राष्ट्रपति का अपमान नहीं. यह सही वक्त है कि राष्ट्रपति या राज्यपाल के अभिभाषण पढ़ने की बाध्यता पर पुनर्विचार किया जाये. इस ‘परंपरा’ को ढोना क्यों जरूरी है?
पुनश्चः वैसे संसद के नये भवन के उद्घाटन समारोह और अयोध्या में नये मंदिर में ‘प्राण प्रतिष्ठा’ के समय राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी को नहीं बुला कर प्रधानमंत्री ने उनका कितना सम्मान किया, यह इतिहास में दर्ज है!