दीक्षांत समारोह जो आमतौर पर विश्वविद्यालय में शैक्षणिक उपलब्धियों का जश्न मनाने के लिए आयोजित किया जाता है, कहा जाता है कि यह छात्रों और उनके अभिभावकों के लिए गर्व और उपलब्धि का क्षण है. इस फोटो में जितनी भी लड़किया है सभी आदिवासी समुदाय से है, सभी ने कड़ी मेहनत कर यह मुकाम हासिल की हैं. एमकाम की डिग्री प्राप्त की है. एक ऐसी पढ़ाई जो सामान्यतः ज्यादा विद्यार्थी नहीं लेते, क्योंकि थोड़ी कठिन मानी जाती है.
लेकिन दुःख की बात यह है कि इसके आगे की राह मुश्किल भरी है, कारण आर्थिक स्थिति ठीक न होना. बहुत सारी लड़कियों से मैने बात की- आगे क्या करना है? तो, उनका जवाब मिला- पैसा इतना तो है नहीं कि मैनेजमेंट करें, बीएड करे या कुछ ट्रेनिंग करें. क्योंकि हमारी सरकार ने मंदिर तो बनवा दिया, लेकिन छात्रों के भविष्य के लिए कोई समुचित व्यवस्था नहीं की. आज पढ़ाई एक बिजनेस बन गया है, हर जगह टैक्स लिया जाता है, यहाँ तक कि सरकारी बैंक एग्जाम हो या रेलवे का हर फॉर्म भरने के लिए पैसा देना होता है. और गरीब आदिवासी परिवारों के पास इतना पैसा कहां? आज छात्र डिग्री लेकर भी उदास है कि इस डिग्री से क्या फायदा? न विशेष पढ़ाई के लिए पैसा है, न नौकरी.. और इस डिग्री के लिए भी सभी छात्रों से 800-800 सौ रुपये लिये गये. एक डिग्री पाने के लिए हम छात्रों ने 10 या 15 साल तक पढ़ाई की, लेकिन उसे पाने के लिए अंत में पैसा देना पड़ा.
और इस डिग्री का हम करें क्या?
पहले लोग बोलते थे पढ़ाई करो, लेकिन अब हमारी सरकार डिग्री से ज्यादा खेलकूद वालांे पर ध्यान दे रही है! आज डिग्री ले ले कर लोग 8-8 घण्टा लाइब्रेरी में कम्पीटिशन की तैयारी कर रहे है. कई लोग तैयारी की वजह से घर से बाहर रेंट में घर लेकर या होस्टल में रह रहे हैं. एजुकेशन सिस्टम की क्या बात करें, यहाँ तो एग्जाम कब होगा, रिजल्ट कब निकलेगा, इसकी ही सही जानकारी समय पर नहीं मिलती. डिजिटाईजेशन एक मुसीबत बन गया है. एजुकेशन सिस्टम सही होता तो आज बार- बार पेपर लीक नही होता. सरकार हो या मंत्री-विधायक, सभी चुनाव से पहले कहते हैं कि नौकरी के लिए वेकेंसी निकलेंगे, बेरोजगारी मिटायेंगे. लेकिन चुनाव के बाद सिर्फ हवा, हवा.
अरे यहाँ की बेरोजगारी देखनी हो तो कभी एग्जाम सेंटर पर जा कर देखिए. कितने छात्र एग्जाम देने आते है. मैं कुछ दिन पहले धुर्वा हाई कोर्ट से गुजर रही थी. तो वहा पर लगभग 2000 से ऊपर की भीड़ लगी थी. मैं ने कुछ लोगो से पूछा क्या हो रहा है, तो उन्होंने कहा इंटरव्यू चल रहा है. चपरासी का. यह जानकर हैरानी हुई कि उसमें 64 पद थे और 20 दिन से इंटरव्यू चल रहा है. उस 64 पद में भी अगर अलग- अलग समुदाय में बांटा जाए तो एक समुदाय को कितने पद मिलंेगे? उसमें भी कई लोग तो घूस देखर अपने लोगों के लिए नौकरी ले ही लेते हैंै, तो बाकी लोग क्या करे? वे बस ऐसा एग्जाम देते रह जायगे और अंत मे दुःखी होकर कही मजदूरी खटंेगे.
इतनी बेरोजगारी है, लेकिन इस पर किसी का ध्यान नहीं. बेरोजगारी के साथ महंगाई. सरकार ने एक योजना निकाली है- मईया सम्मान योजना-जिसमे सभी को तो नहीं, पर कुछ को महीना 2500 मिल रहा है. यह 2500 रुपया तो किसी अच्छे स्कूल में एक बच्चे की फीस होती है. इससे अच्छा महंगाई कम कर देते. सरकार बस चावल मुफ्त में देती हैं, वो भी महीना भर नही चलता. खर्च इतना बढ़ रहा है कि गरीब परिवार के लोग बच्चों को पढ़ाये या घर का राशन चलाये? एक गरीब परिवार की बेटी के लिए डिग्री कोई काम नहीं आती. बस एक फाइल में बंद पड़ा रह जाता है, यहाँ वो लोग आगे जाते हैं, जिसके परिवार वाले पैसे वाले हांे या फिर नौकरी वाले. वे अपने बच्चों को कही न कही सेट कर देते हंै.
गरीब घर के बच्चे अच्छी डिग्री प्राप्त कर भी मामूली पारिश्रमिक पर किसी पेट्रोल पंप, माॅल या दुकानदार के यहां खटते हैं या फिर मजदूरी करने पर मजबूर हो जाते हैं. चित्र में दिखने वाली सभी लड़कियों ने एमकाम की डिग्री हासिल की है, लेकिन उनके लिए आगे का रास्ता या नौकरी कहां है?