जिस देश में दुर्गा, काली, सरस्वती, लक्ष्मी इत्यादि विभिन्न रूपों में महिलाओं की पूजा की जाती है, जहां संविधान प्रदत्त समानता का अधिकार मिला हो और जहां कई दशकों से विभिन्न सरकारी योजनाओं द्वारा उन्हें सशक्त करने का प्रयास हो रहा हो, वहां एक स्त्री अपने पति के दानवी प्रवृत्ति की शिकार होती है और कानून आरोपी को बरी कर देता है. पूरी घटना जानकर सर शर्म से झुक जाता है तो दुख और आक्रोश से मन भर भी जाता है.
11 दिसंबर 2017 को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में एक पुरुष ने पत्नी की असहमति के बावजूद अप्राकृतिक संबंध बनाया. इलाज के दौरान पत्नी की मृत्यु हो गई. निचली अदालत में आरोपी को 10 वर्ष कैद की सजा एवं 1000 जुर्माना लगाया.
लेकिन हाई कोर्ट के जस्टिस व्यास की एकल पीठ ने निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए आरोपी को जेल से रिहा करने का आदेश दिया. उनका तर्क था की पति-पत्नी के बीच अप्राकृतिक यौन संबंध अपराध नहीं है, जब तक कि पत्नी की उम्र 15 साल से कम ना हो. अगर पत्नी बालिग है तो यह दुष्कर्म का मामला नहीं है. कैसी विडम्बना है कि अगर ऐसा घृणित और अमानवीय काम कोई दूसरा पुरुष करें तो उसे बलात्कार और हत्या के जुर्म में कम से कम 20 वर्ष की सजा मिलती. तो क्या हम मान ले पति को क्रूर और अप्राकृतिक संबंध बनाने व हत्या करने की छूट है? क्या पति को पत्नी के साथ कुछ भी करने का लाइसेंस मिल जाता है?
इसके पहले 29. 9. 22 को एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मैरिटल रेप को साबित करने के लिए अपराधिक कार्रवाई जरूरी नहीं. धारा 375 के अनुसार जबरन यौन क्रिया बलात्कार नहीं, अगर महिला बालिग है. उस समय इस पर खूब चर्चा चली थी. यह भी माना गया कि अगर इसे बलात्कार की श्रेणी में रखा जाएगा तो पति-पत्नी के बीच रिश्ते बिगड़ेंगे और पारिवारिक ढांचा बिखर जाएगा. अंततः सुप्रीम कोर्ट का निर्णय सर्वमान्य हुआ.
इसी आलोक में अप्राकृतिक यौनाचार और हत्या करने वाले पति को बरी कर दिया गया.
आधुनिकता का दम भरने वाले देशों में भी ऐसी घटनाएं देखी जा सकती हंै. 2018 तक दुनिया के 185 देश में से सिर्फ 77 देश ऐसे थे जहां वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित किया गया है. 108 में से 74 देश में पति के खिलाफ रेप का केस दर्ज करने का अधिकार है, लेकिन 34 देश में इसे अपराध नहीं माना जाता. हमारे देश के ज्यादातर घरों में लड़कियों को पति की इच्छा के अनुसार चलने एवं जीवन यापन करने की सीख दी जाती है. शारीरिक संबंध बनाना तो पति का हक है. कानून भी यही कहता है. सहमति या असहमति का सवाल ही नहीं. अगर लड़की बालिग है, वह चाहे जितना भी अत्याचार करे, उसे सहन करना होता है. पति के अलावा परिवार के हर पुरुष (पिता, भाई, पुत्र इत्यादि) से लड़की को दब कर रहने की आदत डालनी होती है. छोटी-छोटी बातों पर भी उसे मन मार कर जीना पड़ता है. आम तौर पर ज्यादातर महिलाएं भी यही मानती है क्योंकि उन्हें बचपन से यही सिखाया, बताया जाता है. फल स्वरुप वह शरीर और मन से पति का विरोध करने का साहस नहीं जुटा पाती. शायद आगे चलकर इस पर कोई कानून बन जाय, पर महिला को अपने मन और शरीर को इतना मजबूत करना होगा कि वह अपने ऊपर होना वाले अत्याचार का सामना कर अपनी जान और अस्मिता की रक्षा कर सके.