हेमंत सोरेन की सरकार और उनके हुक्मरानों ने हाल में शोध और अन्वेषण के लिए छात्र उपयोगी तीन पोर्टलों की घोषणा की है. इसके साथ ही इस कार्य के लिए करोड़ों रुपये खर्च करने की योजना भी है. लेकिन व्यवहार में देखें तो किसी तरह की सरकारी मदद लेने या सुविधाओं का उपयोग करना किसी सामान्य छात्र के लिए बेहद मुश्किल है. प्रक्रियाओं को इतना जटिल बना दिया जाता है कि उनकी घोषणाओं का लाभ उठाना मुश्किल हो जाता है.

रांची शहर में एक राज्य पुस्तकालय है. ये एक सरकारी लाईब्रेरी है जिसमे बहुत सारे छात्र कॉम्पिटिशन की तैयारी करने आते है, यह सुबह 9 बजे से रात का 9 बजे तक खुला रहता है, यहाँ बहुत सारी किताबें भी उपलब्ध हंै पढ़ने के लिए. जो छात्र किताब खरीद नही पाते, उनके लिए एक बहुत बड़ा सहारा है. लेकिन यहां से किताब प्राप्त करना एक सामान्य छात्र के लिए मुश्किल है.

इस लाईब्रेरी में रोजना मै भी पढ़ने जाती हूँ. मेरे पास जरूरी किताबें नही है और न इतना पैसा कि मैं जरूरी किताबें बाजार से खरीद सकूं. मुझे लगा चलो लाईब्रेरी से ले कर पढ़ाई करेंगे, तो मैं एक दिन लाईब्रेरी के ऑफिस गयी. वहां के कर्मचारी से कहा कि मुझे लाइब्रेरी कार्ड बनवाना है, बुक लेने के लिए. उन्होंने मोबाइल नंबर और नाम पूछा. फिर बोले एक सप्ताह के बाद आ जाना. मुझे लगा चलो कार्ड बन जायेगा. अब किताब ले पायंगे. पूरे उत्साह से एक सप्ताह के बाद मैं फिर लाईब्रेरी के ऑफिस गयी. तो उन्होंने एक फॉर्म दिया. बोले यहां सिग्नेचर करवाना बहुत जरुरी है, तभी यहाँ के किताब ले सकती हो.

मंैने वह फॉर्म पकड़ा और कुछ देर वहाँ सोचती रही कि यहाँ तो सांसद, विधायक या कॉलेज प्रिंसिपल या कोई राजपत्रित सरकारी पदाधिकारी से हस्ताक्षर करा कर लाने की बात कही गयी है. लेकिन साथ ही उसमें नोट में लिखा हुआ था, एक शर्त - विद्यालय - महाविद्यालय के प्राचार्य सुनिश्चित करेंगे कि संस्था छोड़ने के समय अनुशंसित छात्र से पुस्तकालय का बकाया सहित प्रमाण पत्र प्रस्तुत कराएंगे. यानी कालेज से निकल गये. डिग्री मिल गयी. अब वहां से जाकर प्रमाण पत्र लाना है कि कोई बकाया नहीं है. थोड़ी देर के लिए मान लें कि वह भी किसी तरह जुटा लिया जाये. लेकिन एक सामान्य विद्यार्थी सांसद, विधायक या राजनतित्र अधिकारी कहां से खोजे? और कोई भी अधिकारी उस फार्म पर हस्ताक्षर क्यों करे, जबकि उन्हें इस बात कि गारंटी लेनी होगी कि किताब खोने या किसी तरह की क्षति होने पर उसकी भरपायी उन्हें करनी होगी.

डिजिलाईटेशन का जमाना है. सभी के पास आधार कार्ड होता है. छात्र ही यह गारंटी कर सकता है कि किताब खोने या नष्ट होने की स्थिति में वह उसकी क्षतिपूर्ति करेगा. इस तरह लाईब्रेरी की सदस्यता को जटिल बना दिया जाये तो कोई भी छात्र कैसे लाईब्रेरी का सदस्यता प्राप्त कर सकेगा. कहां तो छात्र फ्रेंडली पोर्टल बन रहे हैं, दूसरी तरफ सरकारी लाईब्रेरी की सदस्यता में इतने बखेड़े?