मो० नईम बेबस बेसहारा अपनी ज़िन्दगी के लिए हाँथ जोड़े मौत के आगे, सब को समझाते के वो चोर नहीं, बच्चा चोर तो क़तई नहीं पर कहाँ कोई सुनने वाला समझने वाला. सब के सर में ख़ून जो सवार है. मारना है तो मारना है आख़िर कार मार दिया जीती जागती ज़िन्दगी को मौत की नींद में सुला दिया।
जब से मैंने इसे देखा है, बेचैनी सी लग गई है. यह भीड़ कहाँ से आती है और ख़ून पी कर कहाँ चले जाती है? है कौन यह लोग जो इतना उग्र हो जातें है सिर्फ़ शक के बिना में मार डालते है किसी को भी? क़ानून व्यवस्था देश में है या इनके लिए बस भीड़ इकट्टा की और कर दिया फ़ैसला, यह मामूली भीड़ तो नहीं लगती अब, कहीं से तो इसे समर्थन है?
सरकार नई आई. अच्छे दिनो का वादा कर के सारे के सारे देश के आंतरिक और बाहरी समस्या/मुद्दे दूर करने के लिए और देश में यह कैसा माहौल बना दिया? लोग एक दूसरे को मार दे रहें है सिर्फ़ शक सूबे में, पूरे देश में अराजकता फैला कर रख दिया.
दो दिन पूर्व चार लोगों की निर्मम हत्या की गई बच्चा चोरी के नाम पर और पुलिस करवाई के नाम पर अब तक करवाई ही कर रही है. भीड़ से क़ातिलों का कोई पता नहीं, पता कैसे चले पूरी भीड़ ही क़ातिल है.
हत्या और पुलिस की सुस्त करवाई को देखते आज जमशेदपुर में विरोध प्रदर्शन रखा गया, पर यहाँ प्रदर्शन इतना उग्र हो गया के पुलिस को लाठी डंडे आँसू गैस के गोले तक छोड़ने पड़े. प्रदर्शनकारी केवल अज़ादनगर, मानगो और धतकीडिह तक ही सीमित रहे (दोनो ही इलाक़ा एक विशेष समुदाय के लोगों से भरा है) और अपने ही घर के आस पास आगज़नी और पुलिस पर पत्थर बाज़ी कर डाली. पर इसके एवज़ में मिला क्या? पुलिस की तेज़ तर्रार करवाई वो भी उलटे प्रदर्शन कारियों पर ही, पर यहाँ जो भीड़ विरोध प्रदर्शन करने आइ थी, मो० नईम के हत्या के विरोध में वो राजनीति का शिकार का हो गई.
अभी आपको समझ नहीं आएगा. थोड़ा समय लगेगा. यह भीड़ तंत्र का प्रयोग कर के आपको मारा जाना फिर आपकी भीड़ जमा कर के आप पर लाठी डंडे बरसाना और समाज में यह संदेश देना आपके ख़िलाफ़ आप कैसे हो, आपका स्तर कैसा है. बस इतना ही दिखाना है, आपको समाज में सब से पीछे ले जाना. आपको समाज में नीच का दर्जा दे के दूसरे समुदाय को बताना. आप उस समुदाय से ऊपर हो मेरे साथ हो, वोट की राजनीति करना है, यह तंत्र है लोगों को बाँटने और डराने का जिसका फ़एदा कोई बड़ी चालाकी से ले रहा है.
बड़ी दूर कहीं से सियासत की कोई चाल चल रहा. आप मोहरे बन के वो जैसा चाह रहा है आप वैसा चलते जा रहें है.
इंसाफ़ होना चाहिए बिलकुल होना चाहिए, इंसाफ़ ना मिले तो विरोध भी होना चाहिए पर अपने विरोध का स्तर को ठीक करें, पुलिस से ना लड़े, सरकार से जवाब माँगे. उसने आपसे वोट लिया व्यवस्था ठीक करने की और ठीक से पूरे व्यवस्था को चलाने की, पुलिस सिर्फ़ एक सिस्टम(प्रणाली) है उसे सरकार चलाती है उसका चाल चरित्र चेहरा सब सरकार ने अपने पास रखा है.