इंस्टैंट ट्रिपल तलाक़ पर ये सुप्रीम कोर्ट का फैसला आफरीन और सलीमा जैसी तमाम महिलाओं की जीत है जो इसके ख़िलाफ़ लड़ी और जीतीं. वो इस जीत के लिए बधाई की पात्र हैं. हर किसी को अपने अधिकारों के लिए जरूर लड़ना चाहिए और बाकी सबको उनका सपोर्ट करने चाहिए. पर जैसा हमेशा होता है, महिलायें अकेले के दम पर लड़ाई शुरू करती हैं और जीतती हैं, इस केस में भी ऐसा ही हुआ, पर अब इसका क्रेडिट हर कोई लेना चाह रहा है. चाहे वो राजनैतिक दल या अन्य लोग. जीत के बाद वही लोग अब उन महिलाओं के सपोर्टर बन गए जो इनकी लड़ाई में कभी साथ थे ही नहीं, चाहे वो मुस्लिम दल हो या गैर मुस्लिम. अब ये जीत सबके लिए एक ऐतिहासिक जीत हो गयी, चाहे वो कितने भी एक दूसरे के खिलाफ हों. गैर मुस्लिमों के लिए के लिए मुस्लिम महिलाओं की दिक्कतें अब अचानक इतनी महत्वपूर्ण हो गयी, जबकि उनकी अपने वर्ग से जुड़ी महिलाओं की दिक्कतों के समय ना तो इनको मानवाधिकार की बात याद आती है, ना ही इनकी सोच इतनी अच्छी हो पाती, पर इस मुद्दे पर ये अचानक से इतने बड़े फेमिनिस्ट बन जाते हैं.

यह तथ्य किसी से छुपा नहीं कि भारतीय समाज में मुस्लिम महिलाओं से हिन्दू महिलाओं की स्थिति हमेशा से ज्यादा खराब रही है. कुपोषित बच्चियों की मौत का मामला हो, कन्या भ्रूण की हत्या का माला हो, दहेज उत्पीड़न का मामला हो, दहेज के लिए स्त्री को जला देने का मामला हो, हर लिहाज से भारतीय समाज में हिंदू स्त्रियों की स्थिति मुस्लिम समाज से बद्त्तर है.

यहां तक कि तीन तलाक जैसी व्यवस्था न होने पर भी हिंदू समाज में पति द्वारा छोड़ी गई महिलाओं की ​संख्या आबादी में प्रतिशत के लिहाज से मुस्लिम समाज से बहुत ज्यादा है.

वैसे में, जब “घर वापसी” और “हिन्दू खतरे में हैं “जैसी बातें करने वाले लोग अचानक से मुस्लिम महिलाओं के अधिकार और आज़ादी की बात करने लगे, तो इसका मतलब है कि उनका उद्देश्य कुछ और ही है. क्योंकि वो कितना महिलाओं के पक्ष में हैं ये सब हिंदुओं में फैली कुरीतियों से पता चल जाता है. जब हमारे देश मे आज भी कुछ मंदिरों में महिलाओं के जाने की पाबंदी है, जब उनकी लड़ाई आज भी समानता के अधिकार के लिए चल रही है, तो बजाय उनकी समस्याओं को सुलझाने के ये कट्टर हिन्दू, मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों पर इतने उदार कैसे हो गये?

वो इस ट्रिपल तलाक़ के मुद्दे से सिर्फ उस वर्ग को नीचा दिखाना चाहते हैं क्योंकि वो जानते हैं कि ये एक धार्मिक मुद्दा है जिसमे लड़ाई कोर्ट और धर्म के बीच थी. ऐसे लोग मुस्लिम महिलाओं का सहारा ले कर उनके धर्म की कमियां बताना चाहते हैं. इससे ज्यादा उनको कुछ भी लेना देना नही है. और अगर हिंदुओं को इतनी ही चिंता है या अगर वो उन मुस्लिम महिलाओं का इतना ही अच्छा चाहते हैं, तो करें सरकार से मुस्लिम महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग या दिलाये और कोई खास सुविधाएं. पर ऐसा कुछ भी नही करने वाले ये लोग, क्योंकि असली मुद्दा इनके लिए महिलाओं के भले का है ही नहीं.

ट्रिपल तलाक़ पर बैन उन पीड़ित महिलाओं की वाक़ई एक शानदार जीत है,अब इसके बाद से बाकी महिलाएं भी इस इंस्टेंट तलाक के डर में नही जीएंगी. ये उन सबके लिए फायदे की बात है. पर इसमे भी बाकी लोग अपने अलग अलग फ़ायदे ख़ोज रहे हैं. सरकार इस जीत का श्रेय खुद लेना चाहती है और इस मुद्दे को बढ़ा चढ़ा कर अपनी तमाम नाकामियां छुपाना चाहती है, चाहे वह बेरोजगारी हो, गोरखपुर कांड हो या बाढ़ जैसी समस्याएं, जिसमे इतनी सारी जानें गयी.

और बाकी जो गैर मुस्लिम लोग, जिनका इससे कोई लेना देना नही है, वो बस इस मुद्दे के बहाने मुस्लिम वर्ग को नीचा दिखाने में लगे हैं. उनके लिए अपनी पत्नी को बिना तलाक़ छोड़ के जाना गौतम बुद्ध जैसा है और सही है, वही दूसरी और वो दूसरे धर्म की महिलाओं के हक़ की बात करते हैं. जब ये राजनैतिक दल खुद गुरमीत राम रहीम जैसे रेपिस्ट के भक्त हैं, तो महिलाओं के हितैषी कैसे, फिर चाहे वो किसी भी वर्ग की क्यों ना हो?