झारखंड को बने 17 साल होने को है, लेकिन झारखंड के हाथ की लकीरें अब तक नही खिंची हैं. ऐसा लगता है जैसे मानो अभी झारखंड की किस्मत लिखा जाना हो. लेकिन बीते सालों की कहानी देखी जाए तो यह जरूर कहा जा सकता है कि झारखंड को बना कर भी बनाया नही गया. यूं देखा जाए तो राज्य पर सबसे ज्यादा बार राज बीजेपी को मिला, खनिज संपदाओं से भरे राज्य में विकास की गाड़ी अब तक दौड़ नही पायी है. सरकारें दूसरे दलों की भी बनी, लेकिन हर किसी ने राज्य के विकास की जगह खुद के विकास पर ही जोर दिया. मसलन, राज्य आज भी बिखरा हुआ है और संगठित महज वो लोग है जो इस राज्य पर राज कर रहे हैं. बात शिबू सोरेन की हो, या बाबूलाल मरांडी की, इन नेताओं पर जनता ने अपना खूब भरोसा जताया, लेकिन ये भी कुछ खास करते नजर नही आए. शिबू सोरेन की भूमिका तो राज्य को बनाने में रही, लेकिन वो भी पार्टी और बेटे से इधर उधर देख न सके और रोज झारखंड पिछड़ता चला गया. मौजूद दौर में राज्य में बीजेपी की सरकार है, बीजेपी को इस बार जनता ने पूर्ण बहुमत के करीब पहुँचाया, लेकिन बीजेपी की सरकार में भी भारी निराशा देखने को मिल रही है, हालांकि सरकार ऐसा नही मानती है.

सरकार खुद के 1000 दिन को मुंबई से लेकर दिल्ली और दिल्ली से लेकर मध्यप्रदेश तक प्रचार कर जश्न मना रही है. जबकि सच्चाई जमीन पर कुछ और ही है. जमीन अधिग्रहण के दौरान अपना हक मांग रहे लोगों पर गोली चलवाने का मामला हो या फिर गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बनाने का दांव हो, हर तरफ इन मसलों पर अपत्ति है, क्योंकि झारखंड का मिजाज तो बिना आदिवासियों के इतर बनाया नही जा सकता, तो ऐसे में झारखंड में विकास की बात आज भी बेमानी सी ही लगती है.जिला अस्पतालों की सच्चाई छुपाए नही छिप रही है और सरकारी विभाग का लचर रवैया लोगों की जान तो लेता ही रहा है. अब बात रांची की ही ले लीजिए, सेवा सदन अस्पताल के सामने स्थित पार्किंग में एक पेड़ से शिव सरोज का झूलता शव मिला था. युवक ने दो गमछे की मदद से फांसी लगा ली थी . पीएमओ और डीजीपी समेत अन्य अधिकारियों को भेजे गये अपने सुसाइड नोट में उसने लिखा था कि चुटिया थाना की पुलिस के व्यवहार से क्षुब्ध होकर वह जान देने जा रहा है. उसने अपने पिता को पुलिस के जुल्म से बचाने की भी गुहार लगायी थी. आप सोच लीजिए जिस राज्य की राजधानी में खुलेआम यह सब होता हो, वहाँ दूसरे जिलों का हाल क्या होगा?

और सत्ता बेलागम इसलिए भी दिखती है क्योंकि उसे इस बात का अंदाजा बखूबी है कि विपक्ष तो वही घिसीपिटी राजनीति ही करेगा. जब धनबाद चंद्रपुरा रेल लाइन को बंद किया जा रहा था तब बीजेपी के सांसद और विधायकों ने चूं तक न कि और जब एक झटके में 30 लाख लोगों को बेसहारा कर दिया गया तो फिर सत्ता में बैठे लोग ही राजनीति पर उतारू हो गए. विधायक से लेकर सांसद और सांसद से लेकर राज्य और केंद्र में सरकार बीजेपी की, बावजूद उसके जनता को बेसहारा कर दिया गया. हज़ारो लोग जिनका जीवन उस रेल रुट के सहारे चल रहा था, वो एक झटके में लाचार हो गए. लेकिन बीजेपी विधायक ढुल्लू महतो से लेकर सांसद पीएन सिंह और गिरिडीह के सांसद रविन्द्र पाडेय जनता को झूठा दिलासा देते रहे और नाम मात्र का विरोध करते रहे.

अब असल सवाल कि सरकार जिनकी है क्या उनकी भी नही सुनी जा रही है? तो फिर सुनी किसकी जा रही है और सरकार काम किसके लिए और किसके इशारे पर कर रही है? दरअसल झारखंड को लेकर वादे और संकल्प तो साल 2000 से लिये जा रहे हैं, लेकिन जिस झारखंड में बिरसा को भगवान माना गया उनके घर को भी आज तक सरकारें कंक्रीट का नही बनवा पायी लेकिन राजनीतिक पर्यटन होता रहा. झारखंड के साथ मूल सवाल आदिवासियों का है लेकिन मौजूदा तस्वीर में झारखंड के आदिवासी उस खोई हुई विरासत की तरह हो गए हैं जिनकी प्रदर्शनी प्रधानमंत्री, राज्यपाल या किसी विदेशी राजदूत के सामने नाच और गाने के जरिये ही की जा रही है. आदिवासियों के बच्चों के लिए न तो सही शिक्षा है, न अस्पताल की व्यवस्था. मतलब इलाज के लिए भी आपको राजधानी का ही रुख करना होगा, क्योंकि सरकारी मशीनरी अब भी सही तरीके से गांवों में पहुंच नही पायी है और छोटी छोटी बीमारी ही लोगों के मौत की वजह बन गयी. लेकिन याद करें तो हर सरकार ने आदिवासियों के हित मे काम करने का वादा किया था. झारखंड में सरकारों की दृढ़ता का अंदाजा इसी से लगता है कि साल 2014 तक के आंकड़े बताते है कि राज्य में 70 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ित है और जच्चा बच्चा मृत्यु दर देश के औसत दर 212 को लांघ कर 261 पर पहुंच चुका है. राजधानी रांची से 200 किलोमीटर दूर आदिवासी इलाका सारंडा की तस्वीर हर उस इंसान को अंदर से हिला के रख देगी जिसने लोकतांत्रिक व्यवस्था पर यकीन करते हुए वोट किया हो. दरअसल, 2017 में सरकार के आंकड़े मानते हैं कि वहाँ 20 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं, जबकि सच्चाई उससे और अधिक भयानक है. न वहाँ पीने का साफ पानी है, न खाने को खाना. लगभग वहाँ के आदिवासी बरसाती कीड़े को मारकर खाने के कगार पर है. झारखंड में सरकारी डॉक्टरों के कुल 2900 पद है लेकिन सेवा 1600 डॉक्टर ही दे रहे है. राज्य में महज 3 सरकारी मेडिकल कॉलेज है जो मात्र हर साल 200 डॉक्टर ही राज्य को दे रहे है. वहीं 29.74 लाख हेक्टयर जमीन साल 2014 में सिंचाई के लिए उप्लब्ध थी, लेकिन सिंचाई की सुविधा महज 25 प्रतिशत जमीन पर ही उपलब्ध थी और अब भी हालात नही बदले है.

17 साल के उम्र वाले राज्य में सबसे ज्यादा राज तो बीजेपी ने किया लेकिन सत्ता का जलवा तो यही है कि मौजूदा सीएम पिछली सरकारों को ही दोष देते दिखते है. रघुवर राज में ही शांत और अपने सौहार्द के लिए जाने जाना वाला राज्य गौ हत्या और मौब लिचिंग के लिए बदनाम हो गया है, लेकिन सरकार अब भी मान रही है कि राज्य में तो राम राज है. लेकिन सच्चाई यही है कि बीजेपी के विधायक ढुल्लू महतो तकरीबन दर्जनों भर मुकदमा झेल रहे है, उसमें रंगदारी मांगने जैसे भी कई आरोप शामिल है, तो वही सीधे तौर पर झरिया विधायक संजीव सिंह भी सरेराह कांग्रेस के नेता और धनबाद के पूर्व डिप्टी मेयर की हत्या के आरोप में जेल जा चुके है. जमशेदपुर में बच्चा चोर के नाम पर बिगड़ती कानून व्यवस्था की तस्वीर भी कोई भूल नही सका है. तो फिर रघुवर दास किस बिना पर राज्य में सब ठीक है का डंका बजा रही है?