“यह प्राचीन लोक-कथा है। यह सिर्फ हमारे देश में नहीं, बल्कि दुनिया के लगभग हर अविकसित, विकसित और विकासशील देश में सुनी-कही जाती है ; पढ़ी और पढाई जाती है। एक बार कुछ अंधों को एक हाथी मिल गया। उन्होंने हाथी को छूकर, टटोल-टटोल कर महसूस किया और हाथी के बारे में अपनी अनुभूति बताई। हाथी की टांगों को पकड़ने वाले ने हाथी को किसी खम्भे या पेड़ के तने की भांति बताया। पूंछ पकड़ने वाले ने उसे रस्सी जैसा बताया। सूँड़ पकड़ने वाले ने उसे सांप जैसा बताया। कान पकड़ने वाले ने हाथी को सूप जैसा बताया। दांत पकडने वाले ने भाले जैसा, तो हाथी के पेट को छूने वाले ने मशक या दीवार जैसा बताया…।”

कहानी पूरी हुई भी नहीं कि ‘क्लास’ में हंगामा मच गया। पढ़ने-लिखने वाले हिरन, सियार, गधे, घोड़े जैसे युवाओं में से जवान हाथी किस्म का एक युवक उठा और बोला – “यह कहानी नेत्रहीनों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए गढ़ी गयी है। बरसों से यह सिलसिला चल रहा है। अब हम यह चलने नहीं देंगे – अपने दिव्यांग लोगों का अपमान हम बर्दाश्त नहीं करेंगे!”

खरगोशनुमा शिक्षक कुछ देर तक हतप्रभ-सा खड़ा रह गया। डरा-सहमा-सा। उसने अपनी कुर्सी की पीठ को दोनों हाथों से थामा। तब गले में अटकी सांस ऊपर-नीचे हुई। उसने हकलाते हुए कहा – “डिअर स्टूडेंट्स, आपको क्यों लगता है कि यह कहानी नेत्रहीनों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने के लिए गढ़ी गयी है? यह कथा तो केवल एक प्रचलित कहावत के अर्थ को समझाने के लिए गढ़ी गयी है। ‘अंधों का हाथी’ लोकोक्ति है - कहावत है। इसका अर्थ है - किसी विषय का पूर्ण ज्ञान का न होना। हाल में हमारी सरकार ने एक ‘भारत कोश’ प्रकाशित किया है। उसमें कहा गया है कि इसमें नेत्रहीनों की भावनाओं को ठेस पहुँचाने का कोई उद्देश्य नहीं है।“

अचानक एक हिरन सरीखा युवक उठा। कुलांचे मारने के लहजे में बोला - “ये सब बकवास है! आप टीचर हैं कि फटीचर? आपकी कहानी का पहला सन्टेंस है - एक बार कुछ अंधों को एक हाथी मिल गया। अंधों को हाथी मिल गया? इसका क्या माने?”

उसको देख शिक्षक को लगा, यह कतई इस कक्षा का स्टूडेंट नहीं हो सकता। इसलिए कुछ रौब में आकर बोला -

“इसका अर्थ यह हुआ कि हाथी के बारे में सही जानकारी किसी को भी न हो सकी।”

“यही तो! अंधे जब आंख के अंधे थे, तो उन्हें जो मिला वह हाथी था यह कैसे जान लिया? उन्हें ऐसा हाथी कैसे मिल गया, जिसने खुद को टटोलने का चांस दे दिया? तब तो, वह काठ का हाथी था या खुद अंधा था! है कि नहीं?”

कक्षा में हंसी के फौव्वारे छूटने लगे, तालियां बजने लगीं। टेंशन ढीला होते देख शिक्षक मुस्कराने लगा। शोर थमा, तो वह खरगोश की चाल में हिरननुमा युवक के नजदीक जाकर बोला – “डिअर स्टूडेंट, आप इंटेलिजेंट लगते हैं। उम्मीद है, आप फिक्शन और फैक्ट में फर्क समझ सकते हैं। ‘अंधों का हाथी’ फिक्शन है, माने कि कल्पना है। और इस कथा का मैसेज यह है कि थोड़ा-सा ज्ञान प्राप्त करके स्वयं को सम्पूर्ण ज्ञानी समझना मूर्खताहै।”

“अगर यह कल्पना है, तो सवाल उठता है कि यह कथा किसने गढ़ी? किसी नेत्रहीन ने तो नहीं गढ़ी होगी? किसी आँखवाले ने ही गढ़ी होगी।तो यह कहानी उसने किसके लिए गढ़ी? नेत्रहीनों के लिए या नेत्र होते हुए भी जो दृष्टिहीन हैं उनके लिए?”

“यह उनके लिए है जो नेत्र होते हुए भी दृष्टिहीन हैं।”

“तब तो ये सवाल आज और इम्पोर्टेंट हो जाता है कि लिखनावाला कौन था? क्योंकि उससे ही समझ में आयेगा कि उसकी कहानी का हाथी कौन हाथी था? जंगल का हाथी था? सर्कस का हाथी था या कि मेले-त्यौहार में ले जाने वाला हाथी? और लास्ट बट नॉट लीस्ट, सवाल ये है कि आप हमें यह कहानी क्यों सुना रहे हैं? यह काल्पनिक हाथी की सत्ता का विवरण है या वर्तमान सत्ता के हाथी का बखान?”

शिक्षक की बोलती बंद! इलेक्शन का टाइम है। वह क्या कहे? उसने अपने पुरखों को याद किया और आंख बंद कर दार्शनिक की मुद्रा धारण की! पल भर में उसके ज्ञान-चक्षु खुल गए और उसके मुंह से अमृत वचन झरने लगे – “आपके सारे सवाल वैलिड हैं। ये सब सवाल व्यापक शोध-अध्ययन की मांग करते हैं। इसीलिए तो हमारी सरकार ने पॉलिटिकल लेवल पर कई फैसले किये हैं। पिछले पांच साल में सरकार ने देश के कई विश्वद्यालयों में इस तरह के विषय पर वैज्ञानिक शोध-अध्ययन की प्रवृत्ति को बढ़ावा देने के लिए काफी आर्थिक सहयोग किया है। इसका ताजा प्रमाण है - भारतीय विज्ञान कांग्रेस (इंडियन साइंस कांग्रेस - आईएससी)।पांच साल पहले के अधिवेशन में हमारे पीएम जी ने ‘गणेश जी’ के शरीर पर लगे हाथी के सिर को प्लास्टिक सर्जरी की अद्भुत मिसाल के रूप में प्रस्तुत किया और दुनिया भर में फैले भारतीय वैज्ञानिकों को शोध-अध्ययन की नयी राह दिखाई। उसके बाद ही तो हाल में - आईएससी-2019 में - हमारे प्रोफ़ेसर वैज्ञानिकों ने एक से एक नायाब रिसर्च पेपर्स पेश किये थे! जैसे, कौरव टेस्ट ट्यूब बेबी थे। रावण के पास 24 प्रकार के विमान थे। राम के पास गाइडेड मिसाइलें थीं! ब्रह्मा को डायनासोर के बारे में बहुत पहले मालूम था। आदि-आदि। आप आईएससीअधिवेशन के बारे में मीडिया में देख-पढ़ चुके होंगे। हमारा यूनिवर्सिटी-कॉलेज सबकी पूरी रिपोर्ट मंगा रहा है। आशा है, जल्दी ही आपको रिपोर्ट सप्लाई करने में हम कामयाब होंगे। अगली पारी में सरकार हमें भी उस तरह के शोध-अध्ययन की फेसिलिटी जरूर मुहैय्या कराएगी…।” शिक्षक की बातें सुन कुछ विद्यार्थी ठहाके लगाने में मस्त हो गए और कुछ अपना माथा खुजलाने में व्यस्त हो गए! इसे शुभ शकुन मान शिक्षक क्लास से खिसक गया!