झामुमो के लिए इस बार का लोकसभा चुनाव महत्वपूर्ण माना जा रहा है. कांग्रेस के इस आश्वासन के बाद कि झारखंड का अगला विधानसभा चुनाव झामुमो नेता हेमंत सोरेन के नेतृत्व में लड़ा जायेगा, हेमंत सोरेन इस बात के लिए सहमत हो गये कि वे झारखंड के 14 सीटों में से महज चार सीटों पर चुनाव लड़ेंगे, जबकि कांग्रेस सात सीटों पर. लेकिन यदि इन चार सीटों पर झामुमो अपनी जीत दर्ज नहीं कर सकी तो इस बात की पूरी आशंका रहेगी कि कांग्रेस अपना आश्वासन भूल जायेगी. झामुमो को मिली ये चार सीटें हैं - राजमहल, दुमका, गिरिडीह और जमशेदपुर.

झामुमो झारखंड का प्रमुख क्षेत्रीय राजनीतिक दल है. अपने ही राज्य में आदिवासियों के घटते अनुपात और विभिन्न आदिवासी समुदायों के बीच रही दूरी की वजह से वह राजनीतिक रूप से कभी इतनी शक्तिशाली नहीं बन पायी कि अपने दम सरकार बना सके, लेकिन वह एक प्रमुख राजनीतिक दल है और सभी इस बात को मानते हैं कि भाजपा को टक्कर तो वही दे सकती है. लेकिन सन् 2010 के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा के साथ सरकार बना कर उसने अपनी विश्वसनीयता खो दी. एक बार तो लगा कि अब झामुमो फिर से उभर नहीं सकेगी.

लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी के ऐतिहासिक जीत के बीच भी झारखंड के दो लोकसभा सीटों-दुमका और राजमहल- पर काबिज होकर तथा बाद के विधानसभा चुनाव में 19 सीटों पर जीत दर्ज कर उसने अपना पुराना रुतबा एक बार फिर हासिल कर लिया और 2017 में लिट्टीपाड़ा के लिए हुए उपचुनाव में भाजपा प्रत्याशी को हरा कर वह अतिरिक्त आत्मविश्वास से भर गयी. इस हद तक कि हेमंत सोरेन ने कहना शुरु कर दिया कि उनकी पार्टी अपने दम पर भी चुनाव लड़ सकती है. यह भी स्पष्ट दिखने लगा था कि कांग्रेस दबाव में है और झामुमो के शर्तों पर चुनावी गठबंधन में शामिल होगी.

लेकिन इसी बीच एक उपचुनाव और हुआ और उसमें झामुमो गच्चा खा गई. वह था कोलेबिरा में हुआ उपचुनाव. झामुमो ने इस सीट के लिए अपना प्रत्याशी न देकर झारखंड पार्टी के प्रत्याशी के रूप में खड़ी एनोस एक्का की पत्नी मेनन एक्का समर्थन किया, जबकि कांग्रेस ने विक्सल कोंगाड़ी को और जीत हुई कांग्रेस की. यह एक तरह से झामुमो की भी हार थी और परिणाम यह हुआ कि महागठबंधन में कांग्रेस प्रभावी हो गई. उसने झामुमो को इस बात के लिए मना लिया कि वह सिर्फ चार सीट पर लड़े और अन्य दस सीटों पर महागठबंधन में शामिल अन्य दल.

यही नहीं, इन दस सीटों के बंटवारे पर भी कांग्रेस का जोर रहा. सात सीटें उसने अपने लिए रखी, दो सीटें झाविपा को दिया गया और एक सीट राजद को. कम्युनिस्टों को दो सीटें और दो सीटें राजद को देकर इस गठबंधन को मुक्कमल बनाया जा सकता था. वामदल में माले एक सीट कोडरमा और एक सीट भाकपा हजारीबाग मांग रही थी. लेकिन संभव नहीं हुआ. राजद एक सीट मिलने से नाराज होकर टूट गई. गिरिनाथ और अन्नपूर्णा राजद में शामिल हो गई.

पहले चरण में चतरा और पलामू में संघर्ष बहुकोणीय हो गया. हजारीबाग सीट पर कांग्रेस ने शराब माफिया शिव प्रसाद साहू के भाई गोपाल साहू को टिकट दिया है. सीपीआई से भुवनेश्वर मेहता खड़े हो गये हैं. आशंका यही है कि यशवंत सिन्हा के पुत्र और केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा आसानी से यहां से जीत जायेंगे. कोडरमा सीट पर भी संघर्ष बहुकोणीय है. राजद से भाजपा में शामिल अन्नपूर्णा देवी, माले प्रत्याशी राजकुमार यादव और महागठबंधन प्रत्याशी बाबूलाल मरांडी के बीच.

झामुमो की अपनी दो सीटें राजमहल और दुमका तो पक्की मानी जा रही है, लेकिन जमशेदपुर और गिरिडीह, दोनों सीटों पर संघर्ष कांटे का होगा. जमशेदपुर में झामुमो ने गलती यह की है कि शुरु में आस्तिक महतो को टिकट देने की बात थी, लेकिन बाद में वहां से चंपई सोरेन को खड़ा कर दिया गया. जमशेदपुर कुर्मी बहुल है और यहां से झामुमो हमेशा कुर्मी प्रत्याशी को खड़ा किया करती थी. निर्मल महतो, शैलेंद्र महतो,सुनील महतो आदि. लेकिन इस बार उन्होंने अंतिम क्षणों में आस्तिक महतो की जगह चंपई सोरेन को खड़ा कर दिया.

झामुमो के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका आदिवासी, सदान और औद्योगिक मजदूरों ने निभाई थी और इसके लिए जमीन तैयार की थी झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन, विनोद बिहारी महतो और कामरेड एके राय ने. लेकिन वह कुनबा बिखर गया. बावजूद इसके शिबू सोरेन जब तक प्रभावी रहे तब तक पार्टी में कुर्मी नेताओं को भी जगह मिलती रही. शैलेंद्र महतो, शिवा महतो, टेकलाल महतो पार्टी के मजबूत स्तंभ रहे.

अब झामुमो में जिनकी चलती है, उनमें यह सामाजिक कारीगरी रखने की कुव्वत नहीं. इसका परिणाम जमशेदपुर सीट पर तो पड़ेगा ही, गिरिडीह सीट पर भी पड़ेगा. उम्मीद की किरण यह कि झारखंडी जनता चाहे वह आदिवासी हो या सदान, भाजपा की नीतियों से बुरी तरह आक्रांत है. भूमि कानूनों में संशोधन, सार्वजनिक उपयोग की जमीनों को भूमि बैंक में डालने की नीति, गोड्डा और पत्थरगड़ी क्षेत्र खूंटी में दमन, नये सिरे से होल्डिंग का मसला आदि बुरी तरह जन मानस को प्रभावित कर रहा है.

इसका परिणाम इस रूप में दिख रहा है कि आस्तिम महतो टिकट नहीं मिलने के बावजूद चंपई सोरेन के लिए पूरे मन से काम कर रहे हैं. गिरिडीह में झामुमो प्रत्याशी जगन्नाथ महतो आजसू प्रत्याशी को टक्कर देने की स्थिति में बने हुए हैं. हेमंत सोरेन को बस जनता को यह भरोसा देना है कि वे भाजपा के साथ अब नहीं जायेंगे, जो उनके खिलाफ सबसे बड़ा दुश्प्रचार आज भी है.

और हेमंत सोरेन यदि ऐसा नहीं कर पाये तो यह झामुमो के लिए बेहद घातक होगा. कांग्रेस को कुछ भी खोना नहीं. उसके पास एक भी सीट नहीं है फिलहाल. एक दो सीटें तो वह झटक ही लेगी. बाबूलाल की भी स्थिति वही है. अभी की स्थिति में गोड्डा से उनके प्रत्याशी प्रदीप यादव की जीत पक्की दिख रही है. अन्नपूर्णा देवी का खड़ा होना बाबूलाल के लिए फायदेमंद है.

लेकिन इस आपाधापी में यदि झामुमो ने चारों सीटों में से एक भी सीट गंवाया तो विधानसभा चुनाव में नेतृत्वकारी भूमिका की उनकी दावेदारी कमजोर होगी. इस लिहाज से देखें तो यह झामुमो के लिए आखिरी मौका है. न सिर्फ हेमंत सोरेन के लिए बल्कि झामुमो के लिए भी.