हाल में, झारखंड के जमशेदपुर लोक सभा क्षेत्र के घाटशिला प्रखंड के कुछ सबर गावों के भ्रमण से भाजपा के “डबल इंजन” दावों का खोखलापन स्पष्ट हो गया. राज्य व केंद्र में भाजपा सरकारों (डबल इंजन) के नेतृत्व में झारखंड में हुए “विकास” की प्रशंसा करते रघुवर दास थकते नहीं है, पर झारखंड की बड़ी आबादी, विशेष रूप से आदिम जनजाति समूह, जैसे जमशेदपुर के गावों में रहने वाले सबर अभी भी भूख और गरीबी में जीते हैं. गौर करने की बात है कि इस क्षेत्र के विधायक व सांसद दोनों भाजपा के हैं.

राशन और सामाजिक सुरक्षा पेंशन से वंचित

सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार सभी आदिम जनजाति परिवारों को अंत्योदय राशन कार्ड का अधिकार है जिसके माध्यम से उन्हें प्रति माह 35 किलो मुफ्त अनाज मिलना है. झारखंड में आदिम जनजाति परिवारों को 600 रु की मासिक पेंशन भी मिलनी है (राज्य सरकार के हाल के निर्णय के अनुसार अब 1000 रु प्रति माह मिलना है).

इन सुरक्षाओं के बावज़ूद बासाडोरा गाँव के जोबा और बनावली सबर भात-नमक पर ही मुश्किल से जीते हैं. उनके टोले के अन्य परिवारों की तरह, वे भी आजीविका के लिए जंगल एवं मज़दूरी पर निर्भर हैं. दिन भर की कमर-तोड़ मज़दूरी के बाद दोनों मिलकर 200 रु कमाते हैं. आधार न होने के कारण उनके पास न तो राशन कार्ड है और न ही उन्हें आदिम जनजाति पेंशन मिलती है.

जिन चार गावों में भ्रमण किया गया, उनमें 106 सबर परिवारों में से कम-से-कम 45 परिवार आदिम जनजाति पेंशन से वंचित हैं. अनेकों के पास आधार भी नहीं है.

होलुदबोनी के सोमबारी व भूशेन सबर आधार न होने के कारण अपने राशन व पेंशन से वंचित हैं. सोमबारी पिछले एक महीने से बीमार है. प्रखंड स्तरीय सरकारी अस्पताल ने उनकी कोई जांच न कर उन्हें केवल विटामिन सप्लीमेंट दे दिया. उन्हें अभी भी कंपकंपी होती है, बुखार से ग्रषित रहती हैं एवं लगातार कमज़ोर होती जा रही हैं.

होलुदबोनी के किशोरी और मालती सबर भी आधार न होने के कारण अपने पेंशन से वंचित हैं. उसी गाँव की वृद्धा फुलमनी सबर अकेली रहती हैं. न ही उनके पास राशन कार्ड है और न उन्हें पेंशन मिलती है. उनके पास आधार न होना भी इसका कारण हो सकता है.

गरीबी और कुपोषण

सबर परिवार सरकार द्वारा वर्षों पहले निर्मित एक-कमरे के जीर्ण घरों में रहते हैं. अधिकांश सबर कुपोषित हैं. झारखंड में बच्चों को आंगनवाड़ियों में 3 अंडे प्रति सप्ताह एवं विद्यालयों के मध्याह्न भोजन में 2 अंडे प्रति सप्ताह मिलने हैं. लेकिन बासाडोरा की आंगनवाड़ी में अंडे नहीं मिलते. मध्याह्न भोजन में केवल 1 अंडा प्रति सप्ताह मिलता है.

छोटोडांगा में मालती सबर की 23 दिनों की बच्ची का वज़न केवल 1.8 किलो है. उसे जन्म के बाद प्रखंड अस्पताल में अस्वस्थ बच्चों के लिए बनी सुविधा में पांच दिन रखा गया और उसके बाद विटामिन सिरप के साथ वापस भेज दिया गया. आंगनवाड़ी सेविका एवं अस्पताल के डॉक्टर की देखभाल में कुपोषित बच्ची की जान तो शायद बच जाएगी, लेकिन उसकी स्थिति उसकी और उसकी माँ की भूख व कुपोषण की स्थिति भी उजागर करती है. यह परिवार अनाज के चंद दानों के लिए मोहताज है.

अधिकांश परिवारों को पिछले एक साल में नरेगा में काम नहीं मिला. मज़दूरी भुगतान में विलम्ब के कारण कई लोग नरेगा में काम भी नहीं करना चाहते हैं.

शिक्षा की जर्जर व्यवस्था

इन गावों में शायद ही कोई व्यस्क शिक्षित है. 2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड के सबर वयस्कों में केवल 21% ही शिक्षित हैं. सबर परिवारों में शिक्षा की स्थिति को सुधारने के लिए सरकार की ओर से किसी प्रकार की विशेष पहल नहीं की गयी है. छोटाडांगा के गोवर्धन सबर और रवि सबर ने प्राथमिक विद्यालय से पढ़ाई छोड़ दी, क्योंकि उन्हें गैर-आदिम जनजाति बच्चे परेशान करते थे.

जमशेदपुर लोकसभा चुनाव 12 मई को होने वाला है. सबर समुदाय की चिंताजनक स्थिति अभी तक चुनावी चर्चा में नहीं दिख रहे हैं. क्या विपक्षी महागठबंधन चुनावी दौर में डबल इंजन युक्त भाजपा से सबर के मुद्दों पर जवाबदेही मांग पाएगी?