चीन में पैदा होने के कारण यह स्वभाव से साम्यवादी जान पड़ता है, क्योंकि चीन की सीमा से सटे एशियायी गरीब देशों को छोड़ कर वह यूरोप के धनी तथा विकसित देशों की ओर रूख करता है. अब तो चीन का चिर प्रतिद्वंद्वी और शत्रु अमेरिका भी जा पहुंचा. कोरोना के सबसे अधिक संक्रमित लोग अब अमेरिका में ही है.

आज कल हमारा देश इवेंटलेस हो गया है. कोई महत्वपूर्ण राजनीतिक या सामाजिक परिघटनाएं नहीं घट रही हैं जिस पर घर बैठे हम सब अपना सुविचार प्रकट कर सकें. बहुत आशा थी कि बीजेपी का विजय रथ कर्नाटक के बाद मध्य प्रदेश पर अपना विजय प्राप्त कर छत्तीसगढ़ की ओर बढ़ेगा और वहां भी अपना विजय पताका लहरायेगा. जनता के वोटों से जीत कर विधानसभा में पहुंचना और मुख्यमंत्री बनना वैसा महत्वपूर्ण नहीं होता, जितना कि एक बहुमत प्राप्त सरकार के विधायकों की खरीद फरोख्त कर, उन्हें मंत्री पद का लालच देकर अपनी सरकार बनाना. मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान ने यह काम कर दिखाया, लेकिन कोरोना वायरस के प्रकोप की वजह से उनकी ताजपोशी बड़ा इवेंट नहीं बन पायी. मुख्यमंत्री बनते ही वे एक बहादुर सेनापति की तरह कोरोना वाईरस के विरुद्ध लड़ाई में कूद पड़े. खैर, अब ले देकर हमारे पास विचार व्यक्त करने के लिए कोरोना वायरस ही बचा है. इसी पर विचार किया जाये.

कोविद19 वाइरस का ही पुकारू नाम कोरोना वायरस है. यह नोवेल कोरोना वयरस भी कहलाता है, क्योंकि यह पुराने वायरस का ही 4जी रूप है, यानि उसकी चौथी पीढ़ी. कोरोना नाम से इसे हम कत्तई स्त्री शब्द नहीं समझ सकते हैं. यह शक्तिशाली पुरुष की तरह आक्रामक है. इसका जन्मस्थान चीन है. चिकित्सकों का कहना है कि यह एक स्थूलकाय वायरस है, इसलिए यह हवा में नहीं उड़ सकता. संक्रमित व्यक्ति के छींक या खांसी के साथ बाहर निकलता है और कहीं बैठ जाता है. फिर जब कोई अन्य व्यक्ति उसके पास आता है, तो उस पर कूद पड़ता है. इसकी छलांग लगाने की क्षमता भी बस एक मीटर से कम ही है. इसेलिए इससे एक मीटर की दूरी बनाये रखने को कहा गया है. यह एक धीर, गंभीर सच्चा योद्धा है. वह किसी भी देश में अपनी युद्ध का बिगुल तो बजाता है, लेकिन अपने शत्रु को तैयारी के लिए 14 दिन का समय भी देता है. चीन में कई हजार लोगों को मारने के बाद यह विश्व के अन्य देशों पर धावा बोलने निकल पड़ा. चीन में पैदा होने के कारण यह स्वभाव से साम्यवादी जान पड़ता है, क्योंकि चीन की सीमा से सटे एशियायी गरीब देशों को छोड़ कर वह यूरोप के धनी तथा विकसित देशों की ओर रूख करता है. अब तो चीन का चिर प्रतिद्वंद्वी और शत्रु अमेरिका भी जा पहुंचा. कोरोना के सबसे अधिक संक्रमित लोग अब अमेरिका में ही है. लेकिन इस संक्रमण से मरने वालों में सबसे अधिक इटली तथा स्पेन में है. उसने इंग्लैंड के प्रिंस चार्लस, प्रधानमंत्री बोरिस जानसन और वहां के स्वास्थ मंत्री को भी नहीं छोड़ा.

अंतरराष्ट्रीय स्वास्थ संगठन ने इसे महामारी घोषित किया है. सटीक दवा नहीं होने के कारण कोरोना वायरस के विश्व अभियान को रोकने का एक ही तरीका माना जा रहा है, सोशल डिस्टेंसिंग, अर्थात एक आदमी को दूसरे आदमी से दूर रखा जाये. विश्व के अधिकांश देशों ने लॉक डाउन की घोषणा कर रखी है. सारे क्रिया कलाप बंद. लोग अपने घरों में बंद हो जाये. इस विषम परिस्थिति में हमारे भारत महान का क्या परिदृश्य है, इसे भी हम देखें. इसे अपने प्रजातंत्र पर अपार विश्वास है. इसको चलायमान रखने के लिए लोकसभा तथा कई राज्यों के विधान सभाओं में बजट सत्र चल रहे थे. कोरोना वायरस की गूंज यहां भी उठी. लेकिन सरकार ने न तो सत्र भंग किया और न अपने पर्यटन विभाग को या पर्यटन के लिए आने वाले विदेशियों को ही रोका, फलत: इटली से आये कोरोना संक्रमित पर्यटक आगरा, जयपुर दिल्ली जैसे शहरों में कोरोना की सौगात भारतीयों को दे बैठे. विदेशों से आये भारतीय भी समाज में घुलते मिलते रहे. उस समय भी अपनी सरकार स्वास्थ व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त करने की अपेक्षा अपने देश में उत्पादित स्वास्थ उपकरणों का निर्यात कर अपनी उदारता का परिचय दे रही थी. राज्य सभा में तो उस समय भी सदस्य धीर गंभीर भाव से संविधान की प्रस्तावना में समाजवाद शब्द का प्रयोग हो या न हो, इस पर बहस कर रहे थे.

जब मध्य प्रदेश की सरकार गिर गयी, बीजेपी की सरकार बन गयी, आनन फानन में बजट पास हो गये, तब प्रधानमंत्री मोदी जी ने टीवी में प्रकट हो कर लोगों को कोरोना के भयावहकता से अवगत कराया. एक दिन का अभ्यास कर्फू भी लगा. लोगों ने ताली, थाली और शंख बजा कर कोरोना वायरस को भगाने की भी कोशिश की. लेकिन अगले चार दिनों में ही जब कोरोना से लोगों की जानें जाने लगी, तो सरकार ने पूरे देश में लॉक डाउन की घोषणा कर दी. जीवन उपयोगी सेवाओं को छोड़ अन्य सभी सेवाये बंद हो गयी. मध्यम वर्गीय परिवारों ने खतरे की संभावना से घरों को भंडार गृह बना दिये. दुकानें खाली हो गयी. लोगों की क्रयशक्ति से सरकार भी अचंभित हो गयी. पढ़ाई से छुट्टी पा कर बच्चे खुश हैं तो पुरुष काम से छुट्टी पाकर और गृहणियां बच्चों और पति को खिला कर. घर के छतों पर टहल कर या खेल कर स्वस्थ रहने का प्रयास भी जारी है. मनोरंजन के लिए टीवी है, तो सामाजिक संपर्क के लिए मोबाईल. मंदिरों मस्जिदों, चर्च तथा गिरजा घरों में भी लोगों ने भीड़ लगाना छोड़ दिया. कोरोना ने हमे असामाजिक तो बना ही दिया, साथ ही एको ब्रह्म का पाठ भी पढ़ा दिया.

परिवार के चार लोग मिल बैठते हैं तो कोरोना का गप होता है. सरकारी प्रयास की आलोचना होती है और लॉक डाउन के चलते हजारों मजदूरों का बिना भोजन पानी के पैदल अपने गांवों की ओर लौटने के दृश्य पर अपनी मध्यम वर्गीय संवेदना भी व्यक्त करना हम नहीं भूलते.वेंटिलेटर की कमी की बात भी हम करने लगे हैं. हालांकि वेंटीलेटर के बारे में हम कुछ ज्यादा नहीं जानते हैं. रवीश कुमार ने वेंटीलेटर के एक घंटे का प्राईम टाईम कर हमारी ज्ञानवृद्धि की है. अब हमे यह विश्वास हो गया कि हमारे देश के स्टार्टअप उद्योगपति कम दाम पर देशी वेंटीलेटर बना कर देश को इस मामले में आत्म निर्भर बना देंगे.

अपने देश में भी धीमी गति से ही सही कोरोना का प्रकोप बढ़ ही रहा है. कोरोना के जोक्स पर भले ही हम हंस ले, लेकिन अपनी सावधानी भी जरूरी है.