चमगादड़ कई नई मानव बीमारियों का खजाना बना हुआ है और वह सैकड़ों प्रकार के कोरोना विषाणुओं से युक्त है. चमगादड़ इनसे बीमार नहीं पड़ते, लेकिन वृद्धि के दौरान उसमें जेनेटिक बदलाव होते रहते हैं. कभी-कभी ये म्यूटेशन कहे जाने वाले बदलाव किसी खास कोरोना विषाणुओं को यह क्षमता प्रदान करते हैं कि वह दूसरे जानवरों और मनुष्यों को संक्रमित कर सके.

चीन के हुबेई राज्य की राजधानी वुहान में फ्लू जैसी, एक नई बीमारी फैलाने की खबर आई. इस खबर के फैलने के काफी पहले, एक चमगादड़ या उसका, एक पूरा समूह उस इलाके में एक नये कोरोना विषाणु के साथ उड़ रहा था. तब यह विषाणु मनुष्यों के लिए खतरनाक नहीं था. लेकिन नवम्बर 2019 के अंत तक इस विषाणु की अनुवंशिकी (जेनेटिक्स) में कुछ खास बदलाव हुआ और उसे सार्स-सीओवी 2 के नाम से पहचाना गया. फिर इसके आरएनए में कुछ बदलाव हुए और चीन में कोविड 19 महामारी शुरू हो गई. अब तक इस महामारी का प्रकोप विश्व के प्रायः सभी देशों में फैल चुका है.

कोविड19 या कोरोना विषाणुओं से दुनिया के वायरोलाॅजिस्ट पहले से परिचित रहे हैं. ये विषाणु कई तरह की बीमारियां पैदा करते रहे हैं, लेकिन इन पर उतनी रिसर्च फंडिंग नहीं की गई. 2003 में एक चमगाददड़ से आये कोरोना विषाणु से कुल 774 लोग मारे गए थे. इसके बाद 2012 में ऊंटों से फैलाने वाले कोरोना विषाणु से मिडिल ईस्टर्न सिन्ड्रोम नामक रोग सामने आया, जिसके चलते 884 लोगों की मौत हुई. इस विषाणु से आज भी लोग संक्रमित होते रहते हैं. लेकिन इस पर भी उचित रिसर्च फंडिंग नहीं हुई. विश्व के विकसित देशों की सरकारों और उनके विशेषज्ञों का ज्यादा ध्यान इनफ्लुएन्जा विषाणु पर अधिक रही. फिर बर्ड फ्लू जैसे वायरसों के अध्ययन पर भी जोर दिया गया, जिससे विश्व में हर साल लाखों लोग मारे जाते रहे हैं.

कोरोना वायरस का पूरी दुनिया में जिस तरह से फैलाव हुआ, उससे यह सबक मिलता हैं कि अगर हमारे वैज्ञानिकों को एकांगी रूप से काम करने को प्रेरित किया जायेगा, तो उसके भयानक परिणाम सामने आयेंगे. तथ्य यह है कि 2015 में महामारी का अध्ययन करने वाले एक वैज्ञानिक रैल्फ बारिक ने उत्तरी कैरोलाइना में चमागादड़ के कोरोना विषाणुओं के जीनों का अध्ययन किया और चेताया कि चमगादड़ों में मौजूद कोरोना विषाणुओं से नये सार्स सीओवी विषाणु जन्म ले सकते हैं. 2016 में उन्होंने कहा कि इन विषाणुओं के मानव प्रवेश से दूसरे सार्स जैसे रोग का खतरा विद्यमान है.

उनकी खोज से पता चला कि चमगादड़ कई नई मानव बीमारियों का खजाना बना हुआ है और वह सैकड़ों प्रकार के कोरोना विषाणुओं से युक्त है. चमगादड़ इनसे बीमार नहीं पड़ते, लेकिन वृद्धि के दौरान उसमें जेनेटिक बदलाव होते रहते हैं. कभी-कभी ये म्यूटेशन कहे जाने वाले बदलाव किसी खास कोरोना विषाणुओं को यह क्षमता प्रदान करते हैं कि वह दूसरे जानवरों और मनुष्यों को संक्रमित कर सके. चमगादड़ के मनुष्य में आने और पनपने के लिए दो म्यूटेशन बड़े महत्व के साबित हुए. पहला, उन प्रोटीनों में जो विषाणु की देह पर से फूलगोभी की तरह निकली रहती है (यह संरचना सार्स सीओवी 2 जैसी है). इन प्रोटीनों को स्पाइक कहा जाता है, जिसके द्वारा यह विषाणु मानव कोशिकाओं की एक खास प्रोटीन, सीई 2 से चिपकता है. यह मानव प्रोटीन श्वसन तंत्र में मौजूद होती है. स्पाइक प्रोटीनों की मौजूदगी के कारण ऐसा लगता है कि इस विषाणु के देह पर मुकुट लगे हुए हैं.

वैसे कोरोना का शब्दिक अर्थ भी मुकुट होता है, यानी यह एक मुकुटधारी विषाणु है. दूसरे, अनुवंशिक बदलाव के कारण इस विषाणु के जिस्म पर एक खंजरनुमा प्रोटीन उग आती है, जिसे फ्यूरिन कहते हैं. इस प्रोटीन के कारण यह विषाणु मजबूती से मानव गले और फेफड़ों की कोशिकाओं से चिपक जाता है. ज्ञात हो कि एनथेक्स एवं कई प्रकार के वर्डफ्लू के वायरस भी इस खंजर प्रोटीन के प्रयोग से मानव कोशिकाओं में प्रवेश पाया करते हैं.

इस बात की तहकिकात जारी है कि इस विषाणु का म्युटेशन चमगादड़ों के भीतर ही हो गया है या पहले-पहल संक्रिमत होने वाले मनुष्यों के भीतर हुआ है या फिर यह पहले पेंगोलीन जैसे जीव में गया हो, जहां इसमें संक्रामक व घातक जेनेटिक बदलाव हुआ हो. गौरतलब है कि चीनियों के बीच पेंगोलीन का माॅस काफी लोकप्रिय भोजन है, जिसका प्रयोग औषधियों के निर्माण में भी किया जाता है.

विषाणुओं का एक जीव प्रजाति से दूसरी प्रजाति में जाना ‘स्पीशीज जम्प’ कहलता है. जंगली पशुओं से मनुष्यों में इस तरह से आये रोग ‘जूनोसिस’ कहे जाते हैं. स्पीशीज जम्प से विषाणु के जीनों में लगातार बदलाव होते रहते हैं, जिन पर ध्यान रखना जरूरी है. इसी विकासवादी प्रक्रिया के जरिये सार्स-सीओवी 2, एचआईवी जैसे विषाणुओं की पैदाईश हुई. एचआईवी विषाणु पहले अफ्रीकी बन्दरों और फिर चिम्पैजिओं में फैला और यहीं से आधुनिक एचआईवी का रूप लिया. एड्स का पहला मरीज 1931 के आस-पास पश्चिम कैमरून में पाया गया. अभी यह सारे विश्व में फैल गया है.

इसलिए अगर किसी विषाणु के प्रसार को रोकना है तो उसमें हो रहे बदलावों पर वैज्ञानिक शोध करनी काफी जरूरी है. कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए भी उचित रिसर्च करने की आवश्यकता है.