सबरीमाला मंदिर दक्षिण भारत का एक महिमायुक्त मंदिर माना जाता है. 41 दिनों तक काले कपड़े पहन कर लोग व्रतधारी बनते हैं और मकर संक्रांति के दिन सबरीमाला मंदिर में अयप्पा की पूजा कर अपनी मनोकामनाओं को पूरा करते हैं. अयप्पा चिर ब्रह्मचारी देवता माने जाते हैं, जो शिव तथा विष्णु के मोहिनी रूप से उत्पन्न पुत्र हैं. 800 साल पुराने इस मंदिर में प्रारंभ से ही दस से पचास वर्ष की उम्र की महिलाओं का प्रवेश वर्जित माना गया है. केरल ही नहीं पूरे भारत से अयप्पा के दर्शन को जाने वाले भक्तों ने इसे स्वीकार भी कर लिया था. लेकिन 2016 में अपने अधिकारों के प्रति सचेत कुछ महिला वकीलों ने इस नियम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. इस पर अपना फैसला देते हुए कोर्ट ने संविधान प्रदत्त समान धार्मिक अधिकार का हवाला देते हुए सभी उम्र की महिलाओं का प्रवेश इस मंदिर में सुनिश्चित किया. इसके बाद ही असल विवाद शुरु हुआ. सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का मंदिर प्रशासन, महिलाओं सहित वहां के लोग तथा बीजेपी जैसे राजनीतिक दल विरोध करने लगे. युवा महिलाओं का मंदिर प्रवेश रोका गया. मंदिर में पुलिस तैनात कर दी गई और लोग जेल भी गये.

क्या यह सारा विरोध केवल दस से पचास वर्ष की महिलाओं को मंदिर प्रवेश से रोकना है या इसके पीछे कोई और सामाजिक राजनीतिक स्वार्थ भी छिपा है. इसे देखना होगा, क्योंकि 1991 में केरल हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद कई ऐसी खबरें आई कि इस उम्र की कई महिलाएं धार्मिक या दूसरे कारणों से मंदिर प्रवेश करती रही हैं. उदाहरण के लिए 13 मई 1940 में ट्रावणकोर की महारानी ने मंदिर में अयप्पा के दर्शन किये. यह वहां के रेकार्ड में है. दूसरा 1986 में युवा कलाकार जयश्री, सुधाचंद्रण, अनु, वारीउपकाराशि और मनोरमा ने मूर्ति के सामने अपनी एक तामिल सिनेमा ‘नवीनार कंडवाथिलैई’ के लिए नृत्य किया. कहा जाता है कि बाद में देवस्थान बोर्ड की ओर से हर कलाकार तथा निदेशक पर एक-एक हजार का जुर्माना भी लगाया गया. इसी तरह केरल की पूर्व युवा मंत्री जयमाला भी मंदिर में जा कर अयप्पा के चरण छूये. इस तरह के कई उदाहरण हैं जो यह बताते हैं कि नामी और ओहदेवाले लोगों के घर की युवा महिलाएं वहां आती रही हैं और देवदर्शन भी करती रही हैं. इस तरह यह नियम केवल दिखावे का नियम है. इस तरह के किसी भी नियम का जिक्र हमारे किसी हिंदू धार्मिक ग्रंथ में नहीं है. भारत के पुरुष जो अपने को महिलाओं के सारे क्रिया कलापों के नियंता- नियामक समझते हैं, इस तरह के नियमों को केवल अपनी श्रेष्ठता जताने के लिए बनाते हैं.

अब रही बीजेपी जैसे हिंदूवादी चिंतन वाले राजनीतिक दल का इस विवाद को हवा देने की बात, तो यह सीधे इनके राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि का एक मोहरा बना. केरल में अपने पैर जमाने के लिए आतुर बीजेपी इस मौके को हाथ में लेकर लोगों में अतिवादी हिंदू चिंतन के द्वारा धार्मिक उन्माद फैला रही है ताकि आने वाले चुनाव में एक के स्थान 41 सदस्यों को जितवा कर अपनी सरकार बना सके. अपने इस उद्देश्य का उल्लेख केरल बीजेपी के अध्यक्ष ने खुले आम किया है. यही नहीं भाजपा के शीर्ष नेता और संविधान की शपथ लेकर सरकार में शामिल मंत्रियों ने खुले शब्दों में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की अवमानना करते हुए महिला विरोधी इस आंदोलन में शामिल रहने और उसका समर्थन करने की घोषणा की है.

हिंदू धर्म में ब्रह्मचारी देवता अयप्पा के मंदिर में युवा महिलाओं का प्रवेश वर्जित है, लेकिन चैक चैराहों पर बने हनुमान मंदिर में, जो, एक ब्रहमचारी देवता ही हैं, हर मंगलवार को लाल साड़ी पहने लाल फूल से हनुमान की पूजा करती युवा महिलाएं दिख जाती हैं. शायद इस ब्रह्मचारी देवता के लिए युवा स्त्रियों की पूजा वर्जित नहीं, या फिर यहां भी देवपुत्र अयप्पा तथा योगी द्वारा दलित आदिवासी देवता कहे जाने वाले हनुमान के बीच के ब्रह्मचर्य में भी अंतर कर दिया गया है.

केरल की चेतनशील महिलाएं हो या सारे भारत की, इस तरह के धार्मिक आंदोलनों में शरीक होकर केवल अपने अधिकारों की लड़ाई लड़ती हैं. भारत के अन्य शहरों में स्थित अयप्पा के मंदिर में इस तरह का प्रवेश वर्जित नहीं है. हिंदूवादी ताकतों का प्रयास रहा है कि सब तरह से विकसित शत प्रतिशत शिक्षित राज्य में इस धार्मिक चोर दरवाजे से प्रवेश करे, लेकिन उनका यह प्रयास सफल होता दिख नहीं रहा है. क्योंकि हाल में हुए स्थानीय निकायों के चुनाव में 39 स्थानों में केवल दो स्थान भाजपा को मिले हैं. वैसे, भाजपा इस जीत को भी बड़ी जीत बता रही है.