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साहित्य
नई किताब - कोयलांचल की ‘रक्तरंजित राजनीति’ का दस्तावेज
प्रखर वामपंथी सामाजिक कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी नारायण चंद्र मंडल ने एक महत्वपूर्ण कार्य किया है जो पुस्तक की शक्ल में सामने आया है - ‘रक्तरंजित राजनीति’. दरअसल, यह उन सुनाम-अनाम योद्धाओं की कहानी है ...
पुस्तक समीक्षा - शालडूंगरी का सपना घायल भर हुआ है, लड़ाई अभी बाकी है
लेखक मनोज भक्त पत्रकार रहे हैं, इसलिए स्वाभाविक ही मीडिया के अंदर के हालात, पत्रकारों व संपादकों के चरित्र, उनकी आपसी प्रतिस्पर्धा और राजनीतिक पक्षधरता आदि का उपन्यास में बहुत जीवंत चित्रण हुआ है.
कहानी
विराट - द अनडाइंग ब्रदर
बहुत पहले की बात है। तब महान गौतम बुद्ध भी धरती पर नहीं आये थे और न उनका महान सन्देश ही किसी ने सुना था। उन पुराने दिनों में राजपूताना के बीरवाघ राज्य में एक विमल और सच्चरित्र व्यक्ति रहता था। उसका नाम था विराट। वह तलवार-बहादुर के रूप में विख्यात था।
कहानी
स्त्री सुबोधिनी
प्यारी बहनो, न तो मैं कोई विचारक हूँ, न प्रचारक, न लेखक, न शिक्षक। मैं तो एक बड़ी मामूली-सी नौकरीपेशा घरेलू औरत हूँ, जो अपनी उम्र के बयालीस साल पार कर चुकी है। लेकिन उस उम्र तक आते-आते जिन स्थितियों से मैं गुजरी हूँ, जैसा अहम अनुभव मैंने पाया...
ससनः बिरसा के बनने की कहानी, अटूट संतोष की जुबानी
अटूट संतोष की लिखी कहानी ससन ( आजादी के अज्ञात मतवाले मुंडा आदिवासियों की कहानी ) पढ़ने का मौका मिला. युवा लेखकों को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार ने प्राइम मिनिस्टर्स स्कीम फार मेंटरिंग यंग आर्थस नामक योजना चलाई इसके अंतर्गत युवा नवलेखकों की रचनाएँ मंगवाई गईं.
स्त्री-मन के अंदर झांकती कहानियां
इस कहानी संग्रह ‘निम्मो बनाम निम्मो बी’ की कहानियों के सभी किरदार हमारे आसपास के लगते हैं. ऐसे या इनसे मिलते जुलते लोग हमारे परिवार, मुहल्ले या जान-पहचान के हो सकते हैं. संवेदनशील मन और सक्षम कलम हो, तो कोई भी उन पर कहानी लिख सकता है.
आदिवासी संसार और गैर आदिवासी लेखक
आदिवासी लेखक-लेखिकाओं के अलावा भी कई नाम हैं, जो आदिवासी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं और आदिवासी समाज के लोक गीतों और कविताओं को अपने साहित्य में सम्मिलित कर रहें है. इन सभी का मानना हैं कि गैर-आदिवासियों को भी समृद्ध आदिवासी ज्ञान और आदिवासी दर्शन के बारे में जानना चाहिए.
आदिवासी जीवन और साहित्य की जान हैं स्त्रियां
कला और अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है साहित्य. आदिवासी साहित्य का अर्थ ही है आदिवासी जीवन, उनके दर्शन, उनके संघर्ष और उनके समाज को परिलक्षित करने वाला साहित्य.
आजाद की ‘आत्मकथा’ का विमोचन
प्रबुद्ध इतिहासवेत्ता रोमिला थापर का कहना है कि आज नेताओं में बौद्धिकता का अभाव है. आजादी की लड़ाई में शामिल नेता बौद्धिक थे. वे अनवरत अध्ययन करते थे और देश के उज्वल भविष्य निर्माण के लिए कटिबद्ध थे.
देशभक्त पूंजीवाद बनाम पूंजीवादी देशभक्ति
**सवालः** सरजी, आज देश में सबसे ज्यादा कौन खुश हैं?
**जवाबः** पूंजीपति! इससे शायद ही कोई पूंजीपति असहमत होगा।
रेत समाधि पाठकों के लिए एक वैचारिक कवायद
मूल रूप से हिंदी में लिखे उपन्यास ‘रेत समाधि’ को 2022 के बुकर पुरस्कार दिये जाने पर गीतांजलिश्री को बधाई. भले ही यह पुरस्कार डेजी राॅकवेल द्वारा इसका अंग्रेजी अनुवाद ‘टुब आफ सैंड’ के बाद मिला हो.
बुलबुल के परों पर उड़ते सावरकर
बीजेपी का इतिहास प्रेम जगजाहिर है. जबसे इनकी सरकार बनी है, इतिहास में बदलाव जारी है. इतिहास के किताबों से कई पुराने पाठ हटा दिये गये और नये पाठ जोड़े भी गये. अब तो यह प्रयोग साहित्य तथा भाषा की किताबों में भी हो रहा है.
‘स्त्रीशब्द’ एक मृत्युपर्यंत समाजकर्मी की बेचैनी का दस्तावेज
अपने लेखन और कर्म से समाज के सार्थक बदलाव की प्रक्रिया में जीवन भर लगी रहीं कनक जी के लेखों का यह संकलन उनकी बेचैनी का जीवंत दस्तावेज है. इन लेखों को पढ़ते हुए कोई भी समझ सकता है कि एक सामान्य गृहणी और नौकरी का दायित्व निभाते हुए भी वह किस तरह अपने आसपास की दुनिया में जारी विषमता और अन्याय के प्रति कितनी संवेदनशील थीं.
आईये, जाने ‘जानवर’, ‘मनुष्यों’ के बारे में क्या सोचते हैं
जार्ज आरवेल का पहला उपन्यास ‘ऐनिमल फार्म’ 1945 में प्रकाशित हुआ. उपन्यास में आरवेल ने यह बताने की कोशिश की कि मनुष्य में कष्टों को सहने की एक सीमा होती है, जब इस सीमा का अतिक्रमण होने लगता है तो वह विद्रोह करता है जो बाद में एक बड़ी क्रांति का रूप धारण करता है.
औरत की मानसिक जड़ता को ‘ग्लोरीफाई’ करती हैं नीता सहाय का उपन्यास
नीता सहाय का उपन्यास ‘आंसुओं की गूंज’ भाषा सहोदरी हिंदी, नई दिल्ली, से प्रकाशित है. संक्षेप में कहा जाये तो यह उपन्यास पढ़ी लिखी नौकरी पेशा मध्यमवर्ग की एक औरत के जीवन की त्रासदी की कहानी है.
मैं नहीं, तुम बैठो चिता पर
इस बार प्लीज मैं नहीं बैठूँगी इस होली में !” सोफे पर अपना शॉल फेंकते हुए वह चीखी.
“क्यूँ ? क्या हो गया ? हर बार तू ही तो प्रह्लाद को गोद में लेकर बैठती है ।
‘दयनीय है ऐसा समाज जिसे शूरवीरों की जरूरत पड़ती है’
भारत में आज भी ऐसे लेखक मौजूद हैं, जो बर्टोल्ड ब्रेख्त के नाटक ‘गैलेलियो’ के एक पात्र के एक डायलॉग को अपने लेखकीय साहस और स्वतंत्रता के लिए एक कसौटी मानते हैं। नाटक का पात्र का संवाद है- ‘दयनीय हैं ऐसे समाज, जिन्हें शूरवीरों की जरूरत पड़ती है।’
सपने को जिंदा रखना ही रचनाकर्म का मूलाधार है
देश में ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ संविधान सम्मत है। विरोध में सड़क पर उतरना और किसी संगठन का फतवा जारी करना भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के ही कुछ प्रकार हैं। लेकिन क्या जान मारने की धमकी देने तक की हद तक जाकर अन्य की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विरोध करना ...
अश्विनी पंकज की नई किताब की एक कविता ‘पहाड़’
अश्विनी पंकज किसी परिचय के मोहताज नहीं. उनकी कविता संग्रह ‘खामोशी का अर्थ पराजय नहीं होता’ ई-बुक के रूप में सामने है. इन कविताओं का रसास्वादन तो आप उस किताब से गुजर कर ही करेंगे, यहां प्रस्तुत है उस संग्रह की एक कविता, जिसे आप ‘गागर में सागर’ कहें तो अतिशयोक्ति नहीं होगी.
वंदना की कहीं गहरे उदास करती कवितायें
यह वंदना टेटे की पिछली कविता संग्रह ‘कोनजोगा’ की अंतिम कविता की चंद पंक्तियां है. नितांत व्यक्तिगत अनुभूतियां जो वंदना को पहले ‘नारी’वादी बनाती है, वही सामाजिक यथार्थ से बार-बार मुठभेड़ करते उसे ‘समाज’वादी बना देती है.
आलोका कुजूर की दो कविता संग्रहों का ऑनलाइन लोकार्पण
सामाजिक और राजनितिक मुद्दों में अग्रणी रांची वासी आलोका कुजूर की दो कविता संग्रहों ‘बिर बुरु के दावेदार’ और ‘नए हस्ताक्षर’ का ऑनलाइन लोकार्पण आदिवासी महिला समूह ‘सखुआ’ के फेसबुक पेज से हुआ.
बातें 'आहत देश की'
अपने पूर्ववर्ती नक्सलवादियों की ही भांति ‘‘माओवादी मानते हैं कि भारतीय समाज की समूची संरचना में अंतर्निहित विषमता को समाप्त करने के लिए भारतीय राज्य (स्टेट) को हिंसक तरीकों से उखाड़ फेंकना ही एकमात्र रास्ता रह गया है)’’ और यह रास्ता इन आदिवासियों ने पहली बार नहीं अपनाया है।
हिंसा को यहां से देखिये
अरुंधति राय की पुस्तक ‘आहत देश’ उनके गल्पेतर गद्य-लेखन की श्रृंखला में एक ज्वलंत दस्तावेज है। यह उनके अंग्रेजी शीर्षक ‘ब्रोकन रिपब्लिक: थ्री एस्सेज’ का अनूदित संस्करण है।
हम पंछी एक हाल के
किसी समय एक चिड़ीमार ने चिड़ियों को फंसाने के लिए जंगल में तीन जगह जाल बिछाए। उसके तीनों जाल में कुछ-कुछ पंछी फंस गये। हर जाल में ऐसे पंछी ख़ास तौर से फंस गये थे, जिनने सदा साथ उड़ने और विचरने की कसम खा रखी थी।
दिल में आग, बाहर धुआं - धुआं
गांव के जमींदार थे राधेबिहारी लाल। उनके अत्याचार एवं शोषण से ग्रामीण त्रस्त थे। किसी की जमीन पर कब्जा कर लेना, बहु-बेटियों पर कुदृष्टि रखना - इसे जमींदार साहब अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे।
'बड़े दिन' की प्रतीक्षा ('चैप्लिन का गांधी' का अंश)
किसी जीवंत धर्म के जीवन में शायद दो हजार वर्षों का कोई महत्व न हो. कारण, यद्यपि गाने को तो हम गाते हैं – ‘ऊपर बैठे ईश्वर की जय हो, धरती पर शांति की जय हो’,परंतु आज न तो ईश्वर की जय दिखाई देती है और न शांति की.
गुलामी के बारह वर्ष
कुछ दिन पहले ‘ट्वल्व इयर्स ए स्लेव’ नामक किताब पढ़ने का मौका मिला. यह अमेरिका में रहने वाले एक काला आदमी, सोलोमन नार्थब के बारह साल के गुलामी के जीवन की कहानी है, जिसको उसने खुद लिखा था.
हम जो तारीक राहों में मारे गए
तेरे होंटों के फूलों की चाहत में हम
दार की ख़ुश्क टहनी पे वारे गए
तेरे हाथों की शम्म'ओं की हसरत में हम
नीमतारीक राहों में मारे गए
फ़ैज का एक आत्मीय संस्मरण
तुमने देखी है वो पेशानी वो रुखसार वो होठ