रो रही है वसुंधरा चीख चीख कर,
मैंने तुम्हें बचपन में देखा था
दूकान तोड़ देंगे
झारखंड के नाम पर
सबीर हका की पांच कविताएं
“ओ मेरे आदर्शवादी मन,
4 नवंबर 1974 को बिहार आंदोलन के दौरान हुए एक प्रदर्शन में जेपी पर पुलिस ने लाठियों से जानलेवा प्रहार किया था. उस काले दिन को याद करते हुए हम धर्मवीर भारती की उस दौर में लिखी कविता को आपके सामने प्रस्तुत कर रहे हैं..
मूल कविता बंगला में, अनुवाद अमिताभ चक्रवर्ती. यह कविता बंगलादेश में 1974 के भीषण अकाल के वक्त लिखी गई. आज के झारखंड और ग्रामीण भारत के लिए मौजू.. भात दे, हरामज़ादे ! बहुत भूखा हूँ, पेट के भीतर लगी है आग, शरीर की समस्त क्रियाओं से ऊपर
माँ और पहाड़
वरिष्ठ कवि श्री चंद्रकांत देवताले का निधन हिन्दी के लेखक-पाठक समाज को शोक-संतप्त कर देनेवाली ख़बर है. वे एक महीने से अधिक समय से दिल्ली के पटपड़गंज स्थित एक अस्पताल में भर्ती थे, जहां कल रात उनका देहावसान हुआ. आज दिल्ली के लोधी रोड के विद्युत शवदाहगृह में दिन के 2:30 बजे उनका अंतिम संस्कार किया गया.
भेड़ों के बीच भेड़िया आया
सारंडा में कौन लोग हाथ जोड़ा रहे हैं
फैल चुके नासूर से
1