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शेखर सोनालकर - एक सहमना साथी का जाना
वरिष्ठ समाजवादी कार्यकर्ता और जलगांव से एम. जे. कॉलेज के सेवानिवृत्त प्रोफेसर शेखर सोनालकर का 4 अगस्त 2023 को 72 वर्ष की आयु में निधन हो गया. सत्तर के दशक में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन में शामिल रहे सोनालकर को आपातकाल के दौरान जेल में डाल दिया गया था.
ईला भट्ट - एक प्रेरणादायक जीवन का अवसान
गांधी दर्शन सिर्फ बोलने समझाने का नाम नहीं, बल्कि एक जीवन शैली है. सामाजिक कूरीतियां, आर्थिक गैर बराबरी एवं राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ अहिंसक प्रतिरोध का नाम है. आजादी के बाद गांधीजी के विचारों के प्रचार प्रसार के लिए कई संस्थाएं बनी.
जनतांत्रिक होने की कीमत अदा की स्टेन स्वामी ने
फादर स्वामी हमारी हमारे अनुमान से भी ज्यादा जनतांत्रिक व्यक्ति थे. जनतांत्रिक बने रहना कितने अधिक दुस्साहस का काम है यह झारखंड के मानवाधिकार कर्मी और पीयूसीएल जैसी संस्था के लोग स्वामी से सीख सकते हैं. फादर स्टैंड स्वामी इसकी कीमत देते थे.
प्रखर आदिवासी कवयित्री उज्जवला ज्योति तिग्गा नहीं रही
प्रखर आदिवासी कवयित्री उज्जवला ज्योति तिग्गा का कल रात दिल्ली स्थित आवास में निधन हो गया. यह सूचना उनके भाई विनीत ने दी। पद्मश्री रामदयाल मुंडा की स्मृति में दिए जाने वाले प्रथम राष्ट्रीय आदिवासी साहित्य सम्मान 2013 से सम्मानित उज्जवला ने अपने लेखन की शुरुआत डोरोथी नाम से की थी.
कनक नारीवादी आंदोलन की ताकत थी
कहा जाता है विचार कभी मरता नहीं है. संघर्ष के नये रास्ते ने मानव जीवन को हमेशा एक दिशा ही दिया. कनक उन दिशा देने वाली नारीवादी आंदोलन की एक अगुआ थी.
मृत्यु से बड़ा सच है जीवन, मगर...
मृत्यु अपरिहार्य है, अवश्यम्भावी है. मगर जीवन उससे भी बड़ा सच है. इस बात को मानता हूं. अच्छी तरह समझता हूँ. इसके पक्ष में हमेशा दूरदर्शन पर बहुत पहले प्रसारित सीरियल ‘नुक्कड़’ के एक एपीसोड का किस्सा सुनाता रहता हूँ.
उनका ‘अंतिम’ और मेरा अधूरा सफर
उस (दो मई की) मनहूस शाम को वह ‘अंतिम सफर’ पर दूर, बहुत दूर निकल गईं. अकेले. कभी वापस न आने के लिए. मुझे नितांत अकेला, बीच सफर में छोड़ कर. वैसे उनके जीवन के सफर का अंत या ‘निकल जाना’ तो रिम्स में ही हो चुका था, जब साँसों ने साथ छोड़ दिया था.
कनक: सर्वसमावेशी व्यक्तित्व
कनक जी का यूं अचानक चले जाना अब भी समझ में नहीं आता। यह तो बहुत बड़ी क्षति है, ऐसा बार-बार मन में आता है।
जब गोवा में रोड रोमियों से भिड़ गयीं कनक
मैं जून 1978 में पटना को अलविदा कहकर दक्षिण भारत की शरण में आ गया था । इसलिए कनक-मणिमाला से तब खास संपर्क नहीं हो पाया था । लेकिन एक अच्छा अवसर शीघ्र ही आया जब हमने गोवा में वाहिनी का राष्ट्रीय शिविर का आयोजन अगस्त 1978 में किया था।
नूतन और कनक की मौत की सीख
दो मई को ही साथी नूतन हम सबों को छोड़ गई थीं। यह साल था 2012 और इस दो मई को साथी कनक अलविदा कह गयीं। दोनों को पहले हूल जोहार!
मेरी प्यारी सखी मुन्नी
कनक, मेरी प्यारी ‘मुन्नी’, हमारे जीवन में रच बस गई थी। मेरे पति की बहन - ननंद - के नाते ही नहीं, 20 वर्ष हम साथ रहे. साथ जिए, साथ हँसे-रोये हर सुख और दुख में।
कनक का रूठ कर जाना
कनक, तुम तो रूठ कर हमेशा के लिए चली गयी. तुमने सबको ठीक किया, अपनी माँ को अस्पताल से वापस लौटाया पर तुम क्यों नहीं लौटी.
यादों को शब्दों में बांधना मुश्किल
कनक जी से जुड़ी यादों को शब्दों में बांधना मुश्किल है। उम्र में छोटा होने के नाते मैंने उन्हें हमेशा बड़ी बहन माना।
एक थी कनक
जो भगवान को नहीं मानते, इस तरह की कठिन घड़ी में वे यह कह कर कोई सहूलियत नही पा सकते कि भगवान ने बुला लिया. हमारे लिए मृत्यु हमेशा ही कठिन मसला है.
कनक की याद में कुछ बातें
बोधगया भूमि संघर्ष में गाँव जानेवाली पहली महिला साथी वे ही थीं। उन्होंने ही वाहिनी की शहरी लड़कियों का गाँव जाने का मानसिक अवरोध तोड़ा।
मेरी बहन कनक
कनक नहीं रही. 2 मई को वह हमे छोड़ गयी. कुछ ही महीने पहले उसका जन्म दिन था और मैंने बचकानी हरकत कर डाली. उसे केक खिलाने का.