तीन तलाक़ बिल पर हर किसी के पास अपनी राय है. यहां तक की राजनैतिक पार्टियाँ भी अपने फायदे और नुकसान के चश्में से इसे देख रही हैं. तमाम उदाहरणों से समझ में आता है कि मुख्यतः जब चर्चाये राजनेताओं ने की, तब उन्होंने सिर्फ विपक्ष को घेरने का मौका केंद्र में रखा. मुस्लिम औरतें और उनकी राय से कहीं कोई ताअल्लुक नहीं रखा गया है.

क्या नया है इस तीन तलाक़ बिल में?

नया संशोधन यह कहता है कि अब पीड़िता या सगा रिश्तेदार ही केस दर्ज करा सकेगा. जबकि इसमें पहले प्रावधान था कि इस मामले में कोई भी केस दर्ज करा सकता था.

नया बिल कहता है की मजिस्ट्रेट को ज़मानत देने का अधिकार होगा. इसमें पहले प्रावधान था कि यह ग़ैर ज़मानती अपराध और संज्ञेय अपराध माना जायेगा.

नया संशोधन कहता है कि मजिस्ट्रेट के सामने पति— पत्नी में समझौते का विकल्प भी खुला रहेगा. इसमें पहले समझोते का कोई प्रावधान नहीं था.

आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ट सदस्य कासिम रसूल इलियास ने तीन तलाक़ अध्यादेश को उच्चतम न्यायलय में चुनौती देने की बात कही है. उन्होंने यह भी कहा है कि यह मुस्लिम समाज से सलाह मशवरा किए बगैर लाया जा रहा बिल है.

कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव ने कहा कि सशक्तिकरण के नाम पर सरकार महिलाओं को सिर्फ मुक़दमेबाज़ी का झंझट दे रही है. इस बिल का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को सशक्त करने से ज़्यादा मुस्लिम पुरुषों को दण्डित करना है.

बिल पर राजनीती न होकर, इस बिल से सीधे विक्टिम को कैसे लाभ हो यह ध्यान में रखते हुए बिल को देखा जाना चाहिए था. जिस तरह की प्रक्रियाएं बिल को लेकर आ रही हैं, उससे यह स्पष्ट होता है कि विक्टिम पर दोहरा दवाब पढने वाला है. जिसमें स्वयं महिला के ही अधिकारों का दोहन है. हमें भारतीय संस्कृति के चश्मे से भी देखना होगा, जहां हमारा भारतीय सामाज

रिश्तों के स्तर पर इमोशनली मज़बूत नहीं है कि वह जल्दबाजी में बनाये जा रहे कानूनों का सामना या उसकी प्रक्रियाओं से गुज़र सके.

उदाहरण के लिए पोक्सो में मौत की सज़ा, या तीन तलाक़ में बिना वारंट गिरफ्तारी जैसी सजा सुनकर परिवार के अंदर ही पीड़ित यदि है तो वह कानूनी कार्रवाही से पहले कई बार इस पर विचार करेगी, पारिवारिक दवाब भी बढ़ेंगे. एक औरत होते हुए मुझे लगता है कि जो कानून औरतों की बेहतरी के लिए हैं, उनकी प्रक्रियाएं भी वास्विक रूप से औरतों को सशक्त करने की दिशा में हों. लिहाज़ा उनके भावनात्मक, सामाजिक व् अन्य पहलुओं को देखते हुए रणनीति

बनाने की ज़रूरत है. नहीं तो, पितृसत्तात्मक देश में औरतों के हक़ में बनाये जाने वाले कानून महिला सशक्तिकरण का ढोंग भर बन कर रह जायेंगी.

“भारत सरकार से हमारी अपील है कि तीन तलाक़ एक संवेदनशील बिल है, इसको किसी भी विचारधारा से प्रभावित हुए बिना, इसमें मुस्लिम औरतों की वाज़िब राय और उनके जायज़ हुक़ूक को मद्देनज़र रखते हुए ही सरकार को इसे आगे लेकर जाना चाहिए.’’

भोपाल की मुस्लिम व आदिवासी महिलाओं के साथ निरंतर काम करते हुए, चर्चा के विभिन्न पहलुओं पर आधारित