महिला एवं बाल कल्याण विभाग की केंद्रीय मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी ने संसद में दो टूक शब्दों में कहा है कि मासिक धर्म के अवसर पर महिलाओं को अवकाश नहीं मिलनी चाहिए. इस संदर्भ में अपना वक्तव्य देते हुए कहा है कि महिलाओं को हर महीने होने वाला मासिक धर्म विकलांगता नहीं है, इसलिए इस आधार पर किसी महिला कर्मचारी को विशेष छूट या छुट्टी नहीं मिलनी चाहिए!

अब सवाल यह है कि महिलाओं को हर माह होने वाली माहवारी को विकलांगता कैसे कह दिया गया? या क्या केवल विकलांगता ही आधार बनेगा किसी भी वर्ग को दी जाने वाली सुविधाओं के लिए? महिला विकलांग तो प्रसव के समय भी नहीं होती है. मां बनने वाली हर महिला प्रसव के समय और उसके बाद शारीरिक रूप से कमजोर रहती है, वह एक विशेष अपरिहार्य स्थिति में होती है, जिसमें उसे, उसके नवजात शिशु को एक विशेष देखभाल की जरूरत होती है. वैसी स्थिति उसके लिए छह माह का मातृत्व अवकाश का प्रावधान एक विशेष कानून बना कर किया गया है. वर्तमान संशोधन के अनुसार 15 दिनों का पितृत्व अवकाश का प्रावधान एक पिता बने पुरुष के लिए भी किया गया है. तो क्या यह अवकाश का प्रावधान प्रसूती के समय माता-पिता को विकलांग मान कर किया गया है?

ठीक है प्रसूति के समय दिये जाने वाले अवकाशों के लिए अलग तर्क हैं. लेकिन यह भी सच है कि माहवारी के समय महिलाओं की शारीरिक और मानसिक अवस्था उन दिनों में सामान्य नहीं रहती, विशेष होती है. हर महिला और लड़की उस विशेष अनुभव से गुजरती है. और जरूरी नहीं कि हर लड़की को उस समय एक सामान पीड़ा से गुजरना पड़ता हो. लेकिन जिसको कष्ट होता है, उसे विश्राम की जरूरत होती है. सदियों से समाज और परिवारों को यह जानकारी है और उस पीरियड में महिलाओं को भारी काम करने से परहेज करने को कहा जाता है. अब यह बात अलग है कि यह कौन और कैसे तय करेगा कि किस महिला को कष्ट है, किसे नहीं? अगर माहवारी के लिए अवकाश मिलेगा तो सभी महिलाओं को मिलना चाहिए.

वैसे यह अवकाश कहीं तो महिला कर्मचारियों को मिलता है, कहीं नहीं मिलता है. एक सामान्यीकरण की स्थिति नहीं है. मिलना चाहिए या नहीं यह एक अलग बहस का मुद्दा है, लेकिन अभी का बहस केंद्रीय मंत्री श्रीमती स्मृति ईरानी के विकलांगता वाले बयान के कारण है, जो खतरनाक है. आम नागरिक की सभी सुविधाओं को समाप्त करने वाली आज की यह सरकार की कोई मंत्री अगर ऐसा बयान देती है, तो यह साफ लगता है कि वह इस विशेष अवकाश को बंद करना चाहती है. रेलवे से लेकर आम कई सुविधाओं को इस सरकार ने बगैर कोई बहस चलाये खत्म कर दिया, तो एक डर बनता है कि मुट्ठी भर महिलाओं को ही सही यह प्राप्त सुविधा खत्म तो नहीं हो जाएगी?

सबसे जरूरी है कि महिलाओं को अवसर और विश्वास मिले. माहवारी हो या गर्भ, बहाना बनाकर उनसे अवसर न छीने जाएं और बराबरी के नाम पर सहूलियतें न समेटी जाएं. मानव शरीर, औरत आदमी दोनों को जितना जानेंगे, खुलेंगे, समझेंगे इस कुदरती व्यवस्था का विवेक पूर्ण सम्मान कर पायेंगे.