जिले के चार प्रखंडों (सादर, झिंकपानी, खुंटपानी, तांतनगर) के सभी सरकारी विद्यालयों में मध्याह्न भोजन के लिए लागू केंद्रीकृत किचन व्यवस्था पर खाद्य सुरक्षा जन अधिकार मंच, पश्चिमी सिंहभूम द्वारा किए गए सर्वेक्षण की रिपोर्ट 17 दिसम्बर 2023 को जन चर्चा का आयोजन कर जारी की गयी. सर्वेक्षण में पाया गया कि बच्चे इस नयी व्यवस्था से त्रस्त हैं और पुरानी मध्याह्न भोजन व्यवस्था को पुनः लागू करने की मांग कर रहे हैं. कार्यक्रम में चारो प्रखंड से अनेक अभिभावक, बच्चे, रसोईया व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भाग लिए व अपने अनुभवों को रखे.

चारो प्रखण्ड के 370 सरकारी विद्यालयों (अधिकांश ग्रामीण क्षेत्र में हैं) में जनवरी-अप्रैल 2023 से मध्याह्न भोजन में केंद्रीकृत किचन व्यवस्था लागू की गयी है. यह किचन अन्नामृत फाउंडेशन द्वारा चलाया जा रहा है, जो इस्कॉन मंदिर की संस्था है. चाईबासा में केंद्रीकृत किचन की स्थापना टाटा स्टील व जिला प्रशासन के सहयोग से की गई है जिसमें खाना बन के गाड़ी के माध्यम से विद्यालयों में भेजा जाता है.

केंद्रीकृत किचन से मिल रहे मध्याह्न भोजन की व्यवस्था को समझने के लिए मंच द्वारा सितंबर व नवम्बर 2023 में चारो प्रखंडों के 23 पंचायतों के 42 विद्यालयों में सर्वेक्षण किया गया. सर्वेक्षण के दौरान विद्यालय के छात्रों, शिक्षकों व रसोईयाओं से विस्तृत चर्चा की गई.

सर्वेक्षण के नतीजे चैकाने वाले हैं. सभी 42 विद्यालयों के छात्रों ने कहा कि पहले जो विद्यालय में ही रसोईये द्वारा मध्याह्न भोजन बनता था, वह सेंट्रल किचन से मिल रहे भोजन से बेहतर था. 92 फीसदी विद्यालयों के शिक्षकों ने भी कहा कि विद्यालयों में ही बन रहे भोजन की गुणवत्ता व स्वाद सेंट्रल किचन के भोजन से बेहतर था. 90 फीसदी विद्यालयों के शिक्षकों ने यह भी कहा कि अभी की तुलना में बच्चे पहले ज्यादा खाते थे, जब विद्यालय में ही खाना बनता था. अब खराब गुणवत्ता और स्वाद पसंद ना आने के कारण बच्चों द्वारा भोजन फेंकना आम बात हो गयी है. सर्वेक्षण के दौरान भी कई विद्यालयों में बच्चे मध्याह्न भोजन फेंकते दिखे.

अधिकांश विद्यालयों के शिक्षकों ने स्वीकार किया कि पहले जब विद्यालय में ही भोजन बनता था, वे खुद भी वह खाना खाते थे, लेकिन अब वे अपना टिफिन लाते हैं.

सर्वेक्षण के दौरान बच्चो ने कहा कि पहले कि जब विद्यालय में भोजन बनता था, तब गर्म, ताजा और स्वादिष्ट भोजन मिलता था. हरा साग-सब्जी भी मिलता था. रोज दाल मिलती थी. लेकिन सेंट्रल किचन के खाने में एक अजीब महक रहती है. स्वाद घर के खाने से बिलकुल अलग होता है. सर्दी में खाना जल्दी ठंडा हो जाता है. हरी साग कभी नहीं मिलती है. सब्जी में केवल आलू-पटल रहता है, जिसका बड़ा-बड़ा) टुकड़ा रहता है जो कभी-कभी पूरा सीझता भी नहीं है. कई बार चावल लस-लस (बासी) हो जाता है. दाल पानी-जैसी रहती है और कई बार तो पूरी उबली भी नहीं होती. कई बार दाल खट्टी भी हो जाती है.

अधिकांश शिक्षकों और रसोईयों ने ऐसी ही टिप्पणियाँ की. उनका कहना था कि चूंकि खाना बिना प्याज, लहसन और स्थानीय पसंद अनुरूप मसाले के बिना मशीन में बनता है और ताजा नहीं मिलता है, इसलिए स्वाद सही नहीं होता है और खराब हो जाता है. बच्चो, शिक्षकों व रसोइयाओं ने कहा कि गर्मी के मौसम में भोजन (चावल,दाल) अक्सर खराब हो जा रहा था जिसके कारण बच्चे खा नहीं पा रहे थे. जब विद्यालय में ही मध्याह्न भोजन बनाता था, तब शिक्षक व ग्रामीण उसकी निगरानी कर सकते थे. लेकिन अब शिक्षको और ग्रामीणों का सेंट्रल किचन से आ रहे भोजन की गुणवत्ता और स्वाद की समस्या पर किसी प्रकार का हस्तक्षेप संभव नहीं है.

यह भी बात सामने आई कि केंद्रीकृत किचन व्यवस्था लागू होने के बाद लगभग एक चैथाई सर्वेक्षित विद्यालयों में बच्चो को नियमित रूप से दो अंडा प्रति सप्ताह मिलना बंद हो गया है. अन्नामृत फाउंडेशन अंडा नहीं देती है. अंडे का पैसा अभी भी विद्यालय को भेजा जाता है. चूंकि अब विद्यालय में भोजन नहीं बनता है व अंडा पकाने के लिए अलग से पैसा नहीं दिया जाता है, अनेक विद्यालयों में बच्चो को अंडा नहीं मिलता है.

केंद्रीकृत किचन व्यवस्था से स्थानीय आजीविका पर भी बुरा असर पड़ा है. पहले गाँव व स्थानीय हाट से ही किसानों से मौसम के अनुसार साग-सब्जी खरीद के विद्यालय में मध्याह्न भोजन बनाया जाता था. लेकिन सेंट्रल किचन व्यवस्था लागू होने के बाद यह बंद हो गया है. रसोइयाओं का कई महीनों से भुगतान बकाया है. सर्वेक्षण के दौरान रसोइयाओं ने इस डर को साझा किया कि केंद्रीकृत किचन के कारण आने वाले दिनो में रसोइयाओं, जो गाँव की सबसे वंचित वर्ग से होती हैं, की नौकरी समाप्त हो सकती है.

गौर करने की बात है कि 2023 के मॉनसून सत्र में मझगाँव विधायक निरल पूर्ति ने केंद्रीकृत किचन से मिल रहे खराब भोजन और बच्चों द्वारा न खाने पर विधान सभा में सवाल उठाया था. विभाग ने कहा था कि अगर सुधार नहीं हुआ तो केंद्रीकृत किचन के संचालन में बदलाव किया जाएगा. जिला में लगातार लोग इसकी शिकायत कर रहे हैं.

जन चर्चा में सर्वेक्षण की बताएं को सुनने के बाद विशेष वक्ताओं ने अपनी बता रखा. मुखिया संघ के अध्यक्ष हरिन तमसोय ने कहा कि विभागीय पदाधिकारियों को भी केंद्रीकृत किचन से ही खाना चाहिए. सनयारी उरांव (नरेगा सहायता केंद्र, लोहरदगा) ने कहा कि लोहरदगा में भी अन्नामृता फाउंडेशन द्वारा केंद्रीकृत किचन में ऐसी ही समस्याएं है. जेम्स हेरेंज (राज्य सयोजक, झारखंड नरेगा वॉच) बोले कि मध्याह्न भोजन गरीबों के लिए भीख नहीं है बल्कि संविधान से निकला हुआ अधिकार है. उन्होंने जोड़ा कि आदिवासी बच्चो को जबरदस्ती खराब खाना खिलाना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. दीपक तुबिद (पोषण शोधकर्ता) ने कहा कि बच्चो के पोषण के लिए प्रोटीन, जिसका आदिवासी क्षेत्रों में प्रमुख स्रोत मांस मछली है, बहुत जरूरत है, लेकिन अभी मध्याह्न भोजन में यह पर्याप्त नहीं मिलता है. बलराम (भोजन के अधिकार अभियान) ने कहा कि अन्नमृत फाउंडेशन द्वारा मध्याह्न भोजन में प्याज, लहसन व अंडा न देना खास धार्मिक विचार से प्रेरित है.