दो साल पहले फ्रेंच में लिखित एक ‘रपट-कथा’ फ्रांस के एक अखबार में छपी। पिछले साल उसका अंग्रेजी तर्जुमा ‘वन लाइन स्टोरी’ के साथ ‘कथा-रपट’ के रूप में अमेरिका और यूरोप सहित जापान के अंग्रेजी अखबारों में छपा। एक महीना पहले ‘इंडिया दैट ईज भारत’ में एक स्वनामधन्य अंग्रेजी अखबार ने उसे ‘पट-कथा’ के फॉर्म में ‘साभार’ छापा। वही पटकथा एक सप्ताह बाद उसी अखबार के हिंदी एडिशन में चित्रपट-कथा की शक्ल में इस निःस्वीकरण (डिसक्लेमर) के साथ अवतरित हुई - “ये लेखक के निजी विचार हैं।” तीन साल से ताजा उस ‘फिक्शनल फैक्ट’ का हिंदी चित्रपट-कथा जैसा सारांश इस प्रकार है -

इस बार ‘इंडिया’ का चुनाव सचमुच ‘ऐतिहासिक’ होगा। क्योंकि वोटों की गिनती से यह ‘डिसाइड’ होगा कि भारत के बीते इतिहास का कौन-सा ‘फैक्ट’ सही था और कौन ‘फेक’ था! यह हंसी-मजाक या व्यंग्य नहीं है। महज चुनावी ‘जुमला’ भी नहीं है। यह चुनाव का गंभीर ‘मुद्दा’ है।

मैंने ‘इंडिया’ के कई इलाकों का दौरा किया। देखा, सब जगह चुनावी-सभाओं में ‘इतिहास बदलने के नारे’ का धमाका हो रहा है! उन धमाकों को देख-सुन कर मुझे लगने लगा है कि यह चुनाव सिर्फ इंडिया का नहीं, बल्कि जापान, इटली, जर्मनी और इंग्लैंड-अमेरिका के इतिहासों का भी भविष्य तय करनेवाला है! क्योंकि चुनावी सभाओं में इतिहास की जिन स्पेसिफिक घटनाओं को लेकर आम लोगों में उत्तेजना पैदा की जा रही थी, वे पश्चिमी जगत के इतिहास के पन्नों में अलग-अलग कथारूपों में दर्ज हैं!

मेरे ‘इंडिया’ पहुँचने के 15 दिन पहले ही यहां के घने जंगल से घिरे ‘काऊ बेल्ट’ इलाके में एक चुनावी-सभा हुई थी। उसमें ‘नया इतिहास’ रचने के नारे के विरुद्ध ‘पुराना इतिहास बदलने’ के नारे का पहला धमाका हुआ! तबसे देश भर के गाँव-शहर में बने कंक्रीट के जंगलों में सदियों पहले के इतिहास की एक ‘स्पेसिफिक’ घटना को लेकर पक्ष-विपक्ष के राजनीतिक इतिहास-पुरुषों के बीच भीषण बहसबाजी शुरू हो चुकी थी। ‘हम नया इतिहास रचने निकले हैं’ नारा के खिलाफ ‘हम इतिहास बदलने निकले हैं’ का नारा गूंजने लगा था। वह चुनाव-युद्ध की पहली सभा थी, जो ऐतिहासिक धमाके की तरह देश भर में प्रतिध्वनित हो रहा है।

जहां की चुनावी-सभा में पहला धमाका हुआ था, उसी इलाके के घने जंगल में दूर-दूर बसे गाँवों में मैंने कई चक्कर लगाये। करीब दो दर्जन गांवों के सैकड़ों गरीब-गुरबा स्त्री-पुरुषों से उस चुनावी-सभा के बारे में पूछा। तब मुझे इतिहास की एक स्पेसिफिक घटना से संबंधित ‘चैंकानेवाली’ जानकारियां मिलीं। कुछ ग्रामीणों ने उस घटना की आँखों देखी और कुछ ने कानों सुनी बातें बताईं। उनका कहना है कि इतिहास का मुद्दा उनके अस्तित्व और अस्मिता के लिए गंभीर चुनौती बन गया है। आगामी चुनाव इतिहास का भविष्य बदलने वाला है। ग्रामीणों ने एक जैसे जो कमेंट्स व्यक्त किए, उससे मुझे महसूस हो रहा है कि यह चुनाव सिर्फ इंडिया नहीं, बल्कि ग्लोबलाइजेशन के घेरे में विकास का सपना देखनेवाले तमाम ‘सभ्य और असभ्य’ कहे जानेवाले देशों के इतिहास में ‘सुनामी’ लायेगा! इसलिए मैं उस घटना के बारे में जो कुछ सुना, उसका स्क्रिप्ट भेज रहा हूं.
सभा-स्थल में भारी भीड़ देख मंच पर जमे तमाम लोकल नायकों ने अपने नेशनल प्रधान नायक का जयकारा लगाया। तमाम नायकों चेहरों को अपने चेहरे की कार्बन कॉपी-सा पाकर प्रधान नायक का सीना गुब्बारे की तरह फूल कर 56 इंच का हो गया। उसने मुदितमन मंच पर जमे नायकों को कहा - “वेल डन!”

सभा-मैदान में सुरक्षा का भारी इंतजाम था। चेकिंग की कड़ी व्यवस्था थी। हर व्यक्ति की ‘फिजिकल एंड मेंटल’ चेकिंग के बाद ही एंट्री दी गयी थी, ताकि सभा में कोई विरोधी दाखिल न हो सके। मंच के ऊपर और नीचे सैनिक वेशधारी जवान ‘रोबोट’ की तरह एटेंशन की मुद्रा में अविचल खड़े थे। मैदान में चारों तरफ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंट पुलिस फोर्स गश्त लगा रही थी, ताकि सभा में विरोध का कोई स्वर उठने की जुर्रत न करे दृ खड़ा है, तो बैठ जाए। बैठा है, तो बैठा रहे।

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच प्रधान नायक ने अपना भाषण शुरू किया: “कई गांव बाहरी फौजियों से घिरे थे। गांव के गांव भुखमरी का शिकार होने लगे। स्थानीय फौजी लंबे समय तक दुश्मन का मुकाबला कर सकें, इसके लिए ऐलान किया गया - जितना भी राशन है वह सिर्फ लड़ाई में लगे जवानों के लिए है। ऐलान के मुताबिक कार्रवाई शुरू हुई। यानी औरतों, मां-बच्चों, बूढ़ों और अपाहिजों को बस्तियों से बाहर निकाल कर शहर की दीवार के बाहर मरने के लिए धकेल दिया गया…।”

भीड़ में सन्नाटा छा गया। अपने प्रधान नायक को निहारते मंचासीन नायक भी चकित-चुप! प्रधान नायक ने रहस्यमयी मुस्कान के साथ लंबा पॉज लिया। फिर नाटकीय अंदाज में अपना बायां हाथ लहराते हुए कहा - “आपकी चुप्पी से मैं समझ गया कि आप क्या सोच रहे हो? आप यह सोच रहे हो कि ये इतिहास की बात होगी। आज की बात नहीं हो सकती। है न?”

भीड़ से शोर उठा - “हां…।”

प्रधान नायक ने कहा - “ठीक से बोलिए… आप यही सोच रहे हो न?”

भीड़ ने खिलखिलाते हुए कहा - “हां…!”

प्रधान नायक बोला - “लेकिन सवाल ये नहीं है कि यह आज की बात है या नहीं? सवाल ये है कि अगर ये इतिहास की ही बात है, तो इसे आज क्यों याद करना जरूरी है? इसका असली मैसेज क्या है, जिसे हम भूलते जा रहे हैं? आप जानते हो, असली मैसेज क्या है?”

भीड़ ने चिल्ला कर कहा - “नहीं?”

“इतिहास की ऐसी घटनाओं का मैसेज यह है कि उस वक्त कमजोरों को संकट की घड़ी में मरने के लिए छोड़ देना ऐसा जनसंहार था, जिसे सामाजिक मान्यता प्राप्त थी। इसे वीरतापूर्ण कृत्य समझा जाता था…!”

भीड़ को सांप सूंघ गया!

मंच के नीचे मंच के करीब खड़े एक श्रोता ने दम साध कर मिमियाती आवाज में पूछा - “महाराज, आप महानायक हैं, त्रिकालदर्शी हैं, दिव्य ज्ञानी हैं। आपका कहना है कि पुराणकाल के ऐसे इतिहास को स्मृति के कूड़ेदान से निकाल कर याद करें? ऐसे कृत्य के लिए हम उस ऐतिहासिक समाज को ‘महान’ मानें? क्यों? आज भी ऐसी घटनाओं को ‘वीरतापूर्ण कृत्य’ के रूप में क्यों याद रखना चाहिए?”

प्रधान नायक मुस्कराते हुए बोला - “यह तो भई, आपकी मर्जी है। हमारा तो मानना है कि हमें हमारे उस इतिहास को कभी भूलना नहीं चाहिए, क्योंकि वैसा ‘वीरोचित कृत्य’ करने से हमारे पुरखे हिचकिचाये होते, तो हम-आप और हमारा बहुसंख्यक समाज आज जीवित ही नहीं रहता…!”

भीड़ ने तालियां बजाई। प्रधान नायक बोला - “आपकी तालियों से लग रहा है कि आपने मेरे मन की बात समझ ली। हमारे पुरखों का मैसेज क्या है समझ लिया। बोलो, समझ में आया कि नहीं?”

भीड़ ने जवाब में और जोरदार तालियाँ बजाई।

इस बीच पीछे के एक कोने में कुछ लोग उठ खड़े हुए और बाहर निकलने लगे। गड़बड़ी के अंदेशे में पुलिस फोर्स उनकी ओर लपकी और उन्हें दबोच लिया। उनको सैनिकवेशधारी जवान बाहर ले जाने लगे।

पीछे की इस हलचल को देख मंचासीन नायक एक साथ उठ खड़े हुए और उन्होंने हाथ लहराते हुए भीड़ को ललकारा - “देश बचेगा, हम बचेंगे!”

भीड़ ने दोहराया - “देश बचेगा, हम बचेंगे!”

तब तक भीड़ के एक कोने से आवाज आयी - “देश का नेता कैसा हो?”

भीड़ ने कहा - “महानयाक नायक जैसा हो!”

मंचासीन नायक गरजे - “जोर से बोलो - देश का नेता कैसा हो?”

भीड़ बरसी - “महानायक जैसा हो!”

“’ऐसे नहीं, सब मिलकर बोलो - देश का नेता कैसा हो?”

भीड़ कड़की - “महानायक जैसा हो, महानायक जैसा हो!”

भीड़ के गर्जन-तर्जन के बीच सभा-स्थल से निकलते-निकलते में बाहर निकाले गये लोगों के एक नारे का दम घुट गया। संभवतः वह नारा था - “इतिहास से खिलवाड़ मक्कारी है, जनता के साथ गद्दारी है।”

अद्यतन (लेटेस्ट) सूचना के मुताबिक, वे लोग आज तक घर नहीं लौटे। घरवालों को मालूम नहीं कि वे कहां गुम हो गये? इलाके भर में किसी को यह भी नहीं पता कि उनको बाहर ले जाने वाले सैनिक वेशधारी जवान कौन थे और कहां गायब हैं?