मोदी और उनके पूरे कुनबे के तरह-तरह के फरेब का मामला अब जनता की अदालत में है. फुलवामा में सीआईएसएफ जवानों की संदिग्ध आतंकवादी कार्रवाई में 46 जवानों के मारे जाने का मामला, इलेक्टोरल बाॅंड के नाम पर अब तक के सबसे बड़े राजनीतिक भ्रष्टाचार का मामला, 80 करोड़ जनता के सरकारी राशन पर जीने की मजबूरी के बीच विकास के खोखले दावों का मामला, आदिवासियों के हितैषी बनने का दावा कर जल, जंगल, जमीन की लूट का मामला, राम भक्ति की आड में अडाणी, अंबानी के हितों को साधने का मामला ़- इन सारे मामलों की सुनवाई अब सात चरणों में होने वाले चुनाव में जनता करेगी. और हम यकीन करें कि तमाम विरोधी परिस्थितियों और उनके प्रचंड प्रचार के बावजूद जनता दूध का दूध और पानी का पानी कर देगी. क्योंके झूठ के पांव नहीं होते.

राम मंदिर बनाया, बाबा विश्वनाथ का कारीडोर बनाया, हिंदू मुस्लिम कार्ड सतत खेलते रहे. लेकिन इसके आड़ में क्या-क्या करते रहे, इसका खुलासा एक-एक कर हो रहा है. मीडिया को गुलाम बना कर और अपने खिलाफ हर खबर को गुम करवा कर उन्हें लगता है कि झूठे प्रचार के बल पर वे चुनावी नैया पार कर लेंगे. लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता. एक छोटा मगर मुखर तबका, निजी स्वार्थ से सना तबका लाख मोदी का जयकारा करे, इस बार उनका चुनाव जीतना असंभव नही ंतो बेहद कठिन है. यह बात वे भी जानते हैं. इसलिए तो हर राज्य में वे समझौता कर रहे हैं उन राजनीतिक दलों से जिनसे वे किनारा कर अपने बलबूते चुनाव लड़ने का मंसूबा दिखाते रहे थे हाल तक. बिहार में नीतीश और चिराग पासवान दोनों के समक्ष उन्हें घुटने टेकने पड़े.

क्या जनता पुलवामा में जवानों के शहादत के दिन डिस्कवरी चैनेल के लिए सूटिंग करते मोदी की तस्वीरों को भूल जायेगी? इस बात पर गौर नहीं करेगी कि श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा के दिन वाले समारोहों में कारपोरेट जगत के लोग, फिल्म स्टार आदि तो थे, गरीब जनता कहीं नजर नहीं आयी? इलेक्टोरल बाॅंड पूंजीपतियों और फरेब का धंधा करने वालों से ईडी व अन्य खुफिया एजंसियों का भय दिखा पैसा वसूलने का जरिया बना? क्या जनता के मन में यह सवाल नहीं उठेगा कि यदि देश में सचमुच विकास हुआ होता, श्रम का वाजिब दाम मिल रहा होता तो 80 करोड़ जनता को मुफ्त राशन की जरूरत नहीं पड़ती? बेरोजगारी का यह आलम नहीं होता?

जनता के मन में यह सवाल है, तभी तो विपक्षी दलों की सभाओं में जन सैलाब उमड़ रहा है, चाहे बिहार में तेजस्वी की महारैली हो या बंगाल में ममता की महारैली. पप्पू समझे जाने वाले राहुल का व्यक्तित्वांतर सभी देख रहे हैं. उनकी भीड़ से संवाद की शैली, महत्वपूर्ण सवालों को एकदम सरल तरीके से जन समूहों के बीच उठाना एक बदलाव की तरफ इंगित करते हैं. बस चुनाव तक धार्मिक उन्माद और दंगा फैलाने वाले उनके प्रयासों से बचना है. मतदान करना है और मतदान की गिनती के दिन तक अपने मतों की हिफाजत करनी है. जीत सच की होगी, झूठ और फरेब की नहीं.