एक 24 साल के युवक को लोगों की भीड़ ने पीट-पीट कर मार डाला. उस पर मोटर साईकल, पर्स तथा आईडी कार्ड की चोरी का शक किया गया. एक पोल से बांध कर उसकी पिटाई की गई और उससे ‘जय श्री राम’ तथा जय हनुमान का नारा लगाने के लिए कहा गया. ये सारी चीजे एक वीडियों में दिखी. यह घटना जमशेदपुरसे 35 किमी दूर सराईकेला पलिस स्टेशन के धातकीडीह गांव की है. मृत लड़के का नाम तरबेज था. वह अपने दो साथियों के साथ 18 जून को मोटर साईकल से जमशेदपुर से अपने गांव लौट रहा था. रास्ते में लगभग 15 लोगों की भीड़ ने उस पर आक्रमण कर दिया. उसके साथी भाग गये. लेकिन तरबेज पकड़ा गया और लोग उसे पोल से बांध कर रात भर पीटते रहे और ‘जय श्री राम’ का नारा लगवाते रहे.
19 जून की सुबह को लोगों ने कथित चोरी के सामानों के साथ घायल तरबेज को सराईकेला पुलिसको सौंप दिया. पुलिस ने भी उसके रिसते चोटों को अनदेखा कर चोरी के अपराध में उसे ही न्यायिक हिरासत में भेज दिया. गांव वालों के अनुसार तरबेज चोरी कर भागते समय पकड़ाया और उसने खुद से अपने को चोटिल कर लिया. पुलिस ने उनकी बातों पर विश्वास भी कर लिया. पुलिस का यह भी कहना था कि तरबेज ने अपने साथ हुए मारपीट के बारे में पुलिस को कुछ नहीं बताया. उसकी मृत्यु के बाद ही तरबेज की पत्नी ने पिटाई का वीडियो देते हुए एफआईआर दर्ज किया और तब पुलिस ने भीड़ का नेतृत्व कर रहे पप्पू मंडल को गिरफ्तार किया.
शुक्रवार तक जब तरबेज की हालत खराब होने लगी तो उसे सराईकेला सदर अस्पताल ले जाया गया. वहां भी तरबेज पुलिस से कहता रहा कि उसे किसी अच्छे अस्पताल में ले जाया जाये, क्योंकि उसकी हालत खराब होती जा रही है. अंत में पुलिस उसे टाटा मेन अस्पताल ले गयी जहां के डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
क्या इसे एक सामान्य घटना कही जा सकती है. इस तरह एक भीड़ किसी आदमी को पीटे, उसे चोर बता कर पुलिस को सौंप दें और पुलिस भी समय पर उसका इलाज न करा कर जेल में उसे मरने के लिए छोड़ दें. पिछले पांच सालों में यह 14 वीं घटना है, जब भीड़ ने किसी को पीट-पीट कर मार दिया हो. पूने में एक वेल्डर का काम कर रोजी रोटी कमाने वाले तरबेज की शादी अप्रैल माह में हुई थी और जून में वह ईद मनाने के लिए अपने गांव आया हुआ था. इस तरह भीड़ के हाथों मारे जाने का एकमात्र कारण तरबेज होना है? उसका कोई क्रिमनल रेकार्ड भी नहीं रहा है. यह केवल अमानवीयता और संवेदनहीनता ही नहीं है, बल्कि दूसरे धर्म के प्रति घोर असहिष्णुता को भी बताता है. पिछले पांच सालों में ऐसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, क्योंकि इस तरह के भीड़ को प्रशासन तथा सरकार का वरदहस्त प्राप्त है.
पिछले दिनों अमरिकी सरकार ने अपने एक रिपोर्ट में यह आलोचना की थी कि किस तरह भारत में नेता अपने विषाक्त भाषणों से लोगों को बरगला कर सांप्रदायिकता फैला रहे हैं और सरकार गोरक्षा के नाम पर हत्यायें करने वालों को संरक्षण दे रही है. इस पर बीजेपी सरकार ने अपना विरोध जताते हुए इसे एक विदेशी मुल्क द्वारा भारत के अंदरुनी मामलों में हस्तक्षेप करार दिया था. अब तरबेज की मृत्यु की घटना से अमेरिका के आलोचना की पुष्टी ही हो रही है. देश की सार्वभौमिकता का हवाला देकर सरकार विदेशी आलोचना को तो बंद कर सकती है, लेकिन एक प्रश्न यह भी उठता है कि क्या इस तरह की घटनाओं को सरकार जायज मांन रही है?