10 अप्रैल 2019 को, गुमला के डुमरी प्रखंड के जुरमु गाँव के रहने वाले 50 वर्षीय आदिवासी प्रकाश लकड़ा को पड़ोसी जैरागि गाँव के लोगों की भीड़ ने पीट-पीट कर मार दिया. जुर्मू के तीन अन्य पीड़ित - पीटर केरकेट्टा, बेलारियस मिंज और जेनेरियस मिंज - भीड़ द्वारा पिटाई के कारण गंभीर रूप से घायल हो गए.

इस हिंसा एवं पुलिस की भूमिका के विरुद्ध केंद्रीय जन संघर्ष समिति द्वारा 31 मई 2019 को डुमरी में विरोध सभा का आयोजन किया था. लेकिन उसके बावज़ूद पुलिस द्वारा लिंचिंग के आरोपियों के विरुद्ध त्वरित कार्यवाई नहीं की गयी. लिंचिंग के पीड़ितों पर पुलिस द्वारा गौ हत्या का फ़र्ज़ी केस किया गया जिसके कारण उनका लगातार मानसिक शोषण हो रहा है. इसके विरुद्ध जन संघर्ष समिति द्वारा 24 जून 2019 को उपायुक्त, गुमला के कार्यालय के समक्ष धरना किया गया. सभा में गुमला, लातेहार व रांची से हज़ारों लोगों एवं राज्य के कई मानवाधिकार कार्यकर्ता ने भाग लिया.

सभा की शुरुआत में जन संघर्ष समिति के अल्बर्ट तिग्गा ने प्रतिरोध में आए लोगों को घटना के विषय में एवं मानवाधिकार संगठनों द्वारा जांच में पायी गयी तथ्यों को बताया. जांच में यह स्पष्ट हुआ था कि जुर्मु के एक मरे हुए बैल के मालिक द्वारा पीड़ितों और अन्य ग्रामीणों को बैल का मांस काटने और खाल निकालने के लिए बोला था. जब वो ऐसा कर रहे थे, तब उनपर जैरागी गाँव के लगभग 35 - 40 लोगों की भीड़ ने हमला किया और घंटों पीटा.

आशुतोष राहुल तिर्की ने बताया कि इस हिंसा के अपराधियों पर तुरंत कार्यवाई करने के बजाए पुलिस ने आदिवासी पीड़ितों पर ही गौ हत्या का फ़र्ज़ी प्राथमिकी दर्ज की दी. अभी तक सब अपराधियों को पकड़ा भी नहीं गया है. गुमला न्यायालय ने पीड़ितों के anticipatory bail के आवेदन को अस्वीकार कर दिया है. इस विषय में न्यायालय के संलग्न आदेश से स्पष्ट होता है कि पुलिस द्वारा केस डायरी में जुर्मु के ग्रामीणों के गवाही को दर्ज नहीं किया गया, बैल मालिक के गवाही को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत नहीं किया गया एवं गलत ढंग से आरोपियों के पक्ष में तथ्यों को प्रस्तुत किया गया.

जुर्मु के ग्रामीणों ने बताया इस हादसे के बाद जुर्मु गाँव के आदिवासियों को जैरागी गाँव के लोगों द्वारा विभिन्न तरीकों से डराया-धमकाया जा रहा है. जैरागी के एक व्यक्ति द्वारा जुर्मु में इंटा भट्टा चलाया जाता है. हादसे के बाद स्थानीय प्रशासन के सलाह के अनुसार जुर्मु के लोगों ने इंटा भट्टा को मिट्टी देना बंद कर दिया. इस पर भट्टा मालिक ने जुर्मु के आदिवासियों को धमकाया कि “खून की नदियाँ बहा देंगे”. साथ ही, जुर्मु के आदिवासी बच्चों को जैरागी चौक के सार्वजानिक चाम्पकल से पानी पीने से भी रोका गया.

सामाजिक कार्यकर्ता अशोक वर्मा ने कहा कि 17 जून को राज्य के सराइकेला-खरसावाँ ज़िला में एक मुसलमान को भीड़ द्वारा घंटो पीटा गया जिसके बाद उसकी मृत्यु हो गयी. उससे भी जय श्री राम और जय हनुमान के नारे लगवाए गए. वो पिछले तीन सालों में 18वीं लिंचिंग की घटना थी. लगातार हो रही लिंचिंग की घटनाएं राज्य सरकार की मंशा और सांप्रदायिक सोच को दर्शाती है. धीरे-धीरे प्रशासन और पुलिस भी इसका हिस्सा बन रहे हैं.

जन संघर्ष समिति के सरोज हेम्ब्रोक ने कहा कि जिस कानून के नाम पर निर्दोष लोगों को गौ हत्या के नाम पर मारा जा रहा है, वे इस कानून का विरोध करती हैं. लिंचिंग की घटना, उसके बाद हो रहे आदिवासियों के शोषण और पुलिस की संग्दिध भूमिका का केंद्रीय जनसंघर्ष समिति कड़ी निंदा करता है. विरोध सभा के अंत में प्रतिनिधियों ने उपायुक्त कार्यालय में ज्ञापन देकर निम्न मांगे की:

  1. जुर्मू के आदिवासियों के खिलाफ दर्ज गौ हत्या के फर्जी प्राथमिकी को निरस्त किया जाए.

  2. भीड़ द्वारा की गई हिंसा में शामिल सभी अपराधियों को गिरफ्तार करें एवं उनपर अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत केस दर्ज किया जाए.

  3. स्थानीय पुलिस के खिलाफ पीड़ितों के लिए चिकित्सा उपचार में देरी एवं गौ हत्या का झूठा मुक़दमा दायर करने के लिए कारवाई किया जाए.

  4. मृतक प्रकाश लकडा के परिवार को 15 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए और घायलों को 10 लाख रुपये का अंतरिम मुआवजा दिया जाए.

  5. लिंचिंग पर सर्वोच्च न्यायालय के हाल के फैसले का पूर्ण अनुपालन किया जाए.

  6. हादसे के बाद जुर्मु के आदिवासियों पर हो रहे शोषण के विरुद्ध कार्रवायी किया जाए.