जब शी जिनपिंग महोदय की ताजपोशी की राह लगभग निष्कंटक दिख रही थी, अचानक लोगों की फुसफुसाहटों में एक नाम उभरने लगा - बो शिलाई।
हमारे दफ्तर में लडकियां राजनीति की बातें एकदम नहीं करना चाहती थीं, कभी किया भी तो एकदम दबी जुबान में। सब को मालूम था कि हर दफ्तर में एक न एक बंदा पार्टी का मुखबिर होता है।
जो विदेशी पत्रकार या कूटनीतिक थे, उन्हें भी बस अफवाहों से ही कुछ-कुछ पता लगता था। यहां तक कि बीबीसी और इकानोमिस्ट जैसे नामचीन संस्थाओं की दुकान भी इन्हीं अफवाहों के भरोसे चलती थी हालांकि इन अफवाहों में, जैसा कि दस्तूर है, एक हद तक सच्चाई भी रहती थी। जो भारतीय पत्रकार थे, वे तो उल्टे हमीं से जानना चाहते थे कि हम क्या जान रहे हैं, क्योंकि हम भारतीय राजनयिकों के संपर्क में रहते थे।
लेकिन कुछ ही दिनों में घुमड़ते बादलों का अंदाजा होने लगा, जब चीनी अखबार के संपादकीयों में परोक्ष रूप से बो शिलाई पर हमले शुरु हो गए। लगता था कि किसी रोमांचक सत्ता संघर्ष की बुनियाद रखी जा रही थी।
शी जिनपिंग और बो शिलाई दोनों लगभग सम-सामयिक थे, शिलाई दो चार साल बड़े होंगे। दोनों के पिता कम्युनिस्ट पार्टी में उंचे पदों पर रहे थे। लेकिन जहां जिनपिंग के पिता पार्टी को सांस्कृतिक क्रान्ति के दौर में पदावनत कर मजदूरी के लिए भेज दिया गया था, और फलतः उन्हें सीढ़ी दर सीढ़ी पार्टी में अपनी जगह बनानी पड़ी; वहीं शिलाई के पिता हाल-हाल तक एक ताकतवर गुट के सदस्य रहे थे। शिलाई एक प्रकार से मुंह में चांदी का चम्मच लेकर पैदा हुए थे, और उन्हें चीन की राजनीति में हावी भाई-भतीजावादी धड़े का प्रतिनिधि माना जाता था। ऐसे नेता जिन्हें उपहास में प्रिसलिंग ( युवराज) भी कहा जाता है। लेकिन सन् 2010 तक उनकी गाड़ी सत्ता संधर्ष में जिनपिंग से थोड़ी पीछे चल रही थी।
जिनपिंग दक्षिणी चीन में फूजियान और झेजियांग जैसे महत्वपूर्ण प्रांतों में, और एक छोटे वक़्फे के लिए शंघाई में भी, राज्यपाल और महासचिव जैसे पदों को संभालने के बाद सन् 2007 में केंद्रीय पोलितब्यूरो और उसकी स्थायी समिति में भी जगह बना चुके थे। बो शिलाई उत्तर-पूर्वी नगर दालियान की गद्दी संभालने के बाद मध्य-चीन के महानगर चौंगचिंग के प्रमुख थे। (सनद रहे कि चौंगचिंग को बीजिंग, शंघाई और तियान्जिन जैसे अन्य तीन महानगरों की तरह एक केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा हासिल है)। वे भी 2007 में पोलितब्यूरो में जगह बनाने में कामयाब रहे थे, पर उसकी स्थायी समिति में उन्हें स्थान नहीं मिला था।
कहते थे कि शिलाई को ज्यान जेमिंग गुट की शह हासिल थी। ज्यान जेमिंग देंग श्याओ पिंग के बाद चीन के सबसे ताकतवर नेता माने जाते थे, और सन् 2002 में हू जिनताओ को देश बागडोर सौंपने के बाद भी सत्ता के गलियारों में उनका जबरदस्त प्रभाव रहा था।
वैसे तो बो शिलाई सामंती परिवारवाद के प्रतिनिधि थे; लेकिन जैसे भारतवर्ष में गांधी परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता और श्री का उपभोग करते हुए भी कठिनाई के समय हमेशा समाजवादी लोकप्रियता का दामन थाम लेता है; उसी प्रकार शिलाई अपनी राॅकस्टार जैसी छवि के बावजूद लोक लुभावन मुहावरे गढ़ रहे थे। उन्होंने स्कूली पाठ्यक्रम में फिर से चेयरमैन माओ के सुविचार लगवा दिए, सभी स्कूलों में क्रांतिकारी और राष्ट्रवादी गीतों का गाना अनिवार्य कर दिया, और उनकी शह पाकर पार्टी के कुछ युवा अति संवैधानिक ढंग से सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप करने लगे थे।
आर्थिक उदारीकरण ने करोडों करोड़ चीनियों की गरीबी तो दूर की थी, लेकिन भीषण गैरबराबरी और भ्रष्टाचार का एक तंत्र भी खड़ा किया था। ईर्ष्या और असंतोष के मारे गरीबों के बीच शिलाई के शगूफे लोकप्रिय हो रहे थे।
सत्ता के कान खड़े हो गए। चीन का मध्यवर्ग , जो सांस्कृतिक क्रांति का खौफनाक मंजर भूला नहीं था, वह भी शिलाई के मुहावरे से असहज था। शिलाई और उनकी पत्नी के भ्रष्टाचार के किस्से भी लोगों को संदिग्ध बना रहे थे।
इसी बीच छह फरवरी 2012, यानी चुनावों के दो-तीन महीने पहले, एक खबर आयी - बीबीसी पर - कि चौंगचिंग के पुलिस प्रमुख वांग लिजुन ने भाग कर छंदू ( चेंग्डू) स्थित अमेरिकी कांसुलेट में शरण ली है, और भारी कूटनीतिक तनातनी का माहौल है। पता चला हफ्ते भर पहले ही लिजुन को उनके पद से हटा दिया गया था। हम सब ने सोचा कि वे अमेरिका ‘डिफेक्ट’ करने की फिराक में हैं। लेकिन रोमांच की संभावनाओं का बड़े नाटकीय ढंग से अगले ही दिन पटाक्षेप हो गया जब लिजुन ने कांसुलेट से बाहर आकर खुद ही चीनी अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।
फिर दस दिन होते न होते पता चला कि अभी तो किस्सा बस शुरु ही हुआ है। धीरे धीरे इस घटना के तार चार पांच महीने पहले की एक और घटना से जुड़ने लगे। हुआ यह था कि नवंबर 2011 में चौंगचिंग के एक पांच सितारा होटल में एक अंग्रेज व्यापारी नील हेवुड़ मृत पाए गये थे, और इसे अत्यधिक शराब पी लेने के कारण हुई दुर्घटना करार दिया गया था।
अब जो कहानी सामने आयी उससे पता चला कि नील हेवुड़ दरअसल ओक्तावियो क्वात्रोची की तरह एक फिक्सर/ दलाल थे, जिन्होंने न सिर्फ शिलाई को रिश्वत देकर यूरोपियन कंपनियों के लिए अनुबंध और ठेके हासिल किये थे, बल्कि उस काले धन को फ्रांस की ल्वार वादी में एक महल समेत विभिन्न बेनामी आस्तियों में निवेश करने में भी मदद की थी। यही नहीं, उन्हीं के सदके शिलाई के पुत्र को विलायत के प्रसिद्ध स्कूल ( हैरो) में भी दाखिला मिला था।
शिलाई का सारा कारोबार उनकी पत्नी ‘गू काइलाई’ देखती थीं, और पुलिस प्रमुख लिजुन भी उनके हिस्सेदार थे। लेकिन एक दफा जब हेवुड़ किसी सौदे में अपना हिस्सा बढ़वाने के लिए भयादोहन पर उतर आये और काइलाई का भेद खोल देने की धमकी देने लगे, तो पानी सर के उपर चला गया और काइलाई की एक सहयोगिनी ने हेवुड़ की शराब में जहर मिला कर उनकी हत्या कर दी।
दलाली आदि में हिस्सा देना और बात है, और हत्या, वह भी एक पश्चिमी व्यापारी की, एकदम जुदा। लिजुन की हिम्मत जवाब दे गयी। शिलाई उनका फोन भी टैप करवा रहे थे। शायद उनको जान का भी डर था, और उन्होंने भाग कर अमरीकी कांसुलेट में शरण ले ली।
बीजिंग को इन बातों की भनक लग चुकी थी। सत्ता संतुलन ठीक से साध लेने के बाद, शी जिनपिंग ने झपट्टा मारा। मार्च बीतते न बीतते बो शिलाई को चौंगचिंग के पार्टी प्रमुख पद से हटा दिया गया। अप्रील में वे पार्टी के पोलितब्यूरो से बर्खास्त कर दिये गये और साल खत्म के आखीर तक संसद और पार्टी की सदस्यता से भी हाथ धो बैठे।
उनपर भ्रष्टाचार आदि के लिए आपराधिक मुकदमा चला, जिसके अंश सार्वजनिक रूप से टीवी पर भी दिखाए गये। शिलाई ने अपना अपराध स्वीकार नहीं किया, बहरहाल उनको आजीवन कारावास की सजा हुई। उनकी पत्नी पर नील हेवुड़ की हत्या का मुकदमा चला और उन्हें मृत्युदंड मिला जो बाद में आजीवन कारावास की सजा में तब्दील कर दिया गया।
पोलितब्यूरो के जिस ताकतवर नेता झाउ यांगकोंग ने शिलाई के पक्ष में आवाज उठाई थी, वे भी बाद में पोलितब्यूरो से बर्खास्त कर दिए गए और उन्हें भी भ्रष्टाचार के आरोप में आजीवन कारावास की सजा हुई। और शिलाई के कट्टर और पुराने प्रतिद्वंद्वीयों में से वेन जिआबाओ प्रधानमंत्री बने, और वांग यांग को पोलितब्यूरो की स्थायी समिति में जगह मिली।
इस बीच शी जिनपिंग निष्कंटक चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव, चीनी गणराज्य के राष्ट्रपति , केंद्रीय मिलिटरी कमीशन के अध्यक्ष आदि आदि बन गए।