कश्मीर एक ऐसा स्वर्ग है जहाँ कि कदम कदम पर आपको सचमुच ही जन्नतनशीन करने के सरंजाम हैं। निर्दोष से निर्दोष परिस्थितियों पर सहसा संकट के बादल मंडरा सकते हैं। अभी हम शकूर से बातचीत कर ही रहे हैं कि एक सुनसान से घर के चारो ओर फौज के जवान ताबड़तोड़ घेरा डालने लगे हैं। पता नहीं क्या होने वाला है। परसों हम जम्मू में थे और आज सुबह वहाँ बस स्टैंड पर आतंकवादी हमले की खबर आयी है।

श्रीनगर के लाल चैक और आसपास के इलाकों में चप्पे-चप्पे पर फौज का पहरा है। असलहे से लदे जवान और बख्तरबंद गाडियाँ। मौत कब किस जानिब दस्तक दे, क्या पता।
हम एक अलग लोक में प्रवेश कर रहे हैं, इसका एहसास जम्मू एअरपोर्ट से ही होने लगता है। चार स्तरों का अभेद्य सा सुरक्षा-चक्र है। एअरपोर्ट की मुख्य इमारत के बाहर ही एक बार सामानों की बाजाब्ता जांच, फिर चेक इन से पहले दोबारा और फिर चेक इन के बाद नियमित सुरक्षा जांच। केबिन लगेज का एक एक आइटम खोल कर देखते हैं। चेक इन लगेज आइडेंटिफाइ भी करना है। श्रीनगर में तो यह जांच-पड़ताल और भी सख्त है।

एक चीज मुझे खटकती है। एअरपोर्टों पर तैनात सीआइएसएफ के सुरक्षाकर्मियों की देहयष्टि मैंने हमेशा बड़ी आकर्षक पायी है और चुस्ती थोड़ी रुक्ष किंतु पेशेवर। पर यहाँ सुरक्षाकर्मी प्रायः अधेड़ और तुंदिल और दढ़ियल दिख रहे हैं। गौर करने पर एहसास होता है कि ये सीआइएसएफ के नहीं, बल्कि जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवान हैं। कुछ तो खांटी कश्मीरी हैं- लम्बे, छरहरे, गोरे, तीखी नाक, काली कमानीदार भंवें - आर्य-ईरानी आनुवांशिकी की चुगली करते। देवपुरुष। मानो पुरुषों को भी भगवान ने उतनी ही मेहनत से गढ़ा हो जितनी मेहनत से वे अमूमन स्त्रियों को बनाते हैं।

पर एक दूसरी नस्ल भी है जिनके चेहरों पर अफगानी छटा है। नाक गरुड़ के चोंच की तरह तीखी, पर मोटी-मोटी। मोटे पपोटे भी और झुकी हुई घनी मूंछे।
सुरक्षा जांच ही नहीं, बोर्डिंग के लिए भी पुरुषों और स्त्रियों के लिए अलग-अलग कतारें हैं।

यह थोड़ा अलग सा संसार है।