जब इंदिरा गांधी ने हमारे ऊपर इमरजेंसी लादी या वे तानाशाही की ओर बढ़ने लगीं, संजय को आगे बढ़ाने लगीं, मारुती कांड हुआ तो यह बात सही है कि इमरजेंसी के खिलाफ लड़ने के लिए लोगों ने इन लोगों के साथ तालमेल बिठाया। लोकनायक जयप्रकाश जी कहते थे कि एक पार्टी बनाये बिना हम लोग इंदिरा और तानाशाही को नहीं हटा सकते। चैधरी चरण सिंह की भी यही राय थी कि एक पार्टी बने।

अब चूंकि लोकनायक जयप्रकाश नारायण और सभी लोगों की यह राय थी कि एक पार्टी बनाए बिना हम लोगों को सफलता नहीं मिलेगी, तो हम लोगों ने भी इसके लिए मान्यता दे दी थी लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि यह समझौता दलों के बीच हुआ था-जनसंघ, सोशलिस्ट पार्टी, संगठन कांग्रेस, भालोद और कुछ विद्रोही कांग्रेसी।

आरएसएस के साथ न हमारा कोई करार हुआ न उसकी कोई शर्त मानी गई। बल्कि जेलों में हमारे बीच मनु भाई पटेल का एक परिपत्र प्रसारित किया गया था, उससे तो हमें यह पता चला कि चैधरी चरण सिंह ने 7 जुलाइ, 1976 को आरएसएस की सदस्यता और जो नयी पार्टी बनेगी उसकी सदस्यता इन दोनों में मेल होगा या टकराव, इसकी चर्चा उठायी थी। जनसंघ के उस समय के कार्यकारी महासचिव ओमप्रकाश त्यागी ने स्पष्ट शब्दों में कहा था कि नयी पार्टी जो शर्त लगाना चाहे लगा सकती है। फिलहाल आरएसएस के ऊपर तो पाबंदी है, आरएसएस को तो भंग किया जा चुका है, इसलिए आरएसएस का तो सवाल ही नहीं उठता।

बाद में जब हम लोग पार्टी का नया संविधान बना रहे थे, तो हमारी संविधान उपसमिति ने एक सिफारिश की थी कि ऐसे किसी संगठन के सदस्य को, जिसके उद्देश्य, नीतियों और कार्यक्रम जनता पार्टी के उद्देश्य, नीतियों और कार्यक्रम से मेल नहीं खाते, पार्टी का सदस्य नहीं बनने देना चाहिए। इसका विरोध करने की किसी को भी कोई आवश्यकता नहीं थी। यह तो एक बिल्कुल सामान्य बात थी लेकिन यह विचारणीय बात है कि अकेले सुंदरसिंह भंडारी ने इसका विरोध किया। बाकी सभी सदस्यों ने, इनमें रामकृष्ण हेगड़े भी थे, श्रीमती मृणाल गोरे थीं, श्री बहुगुणा थे, श्री वीरेन शाह थे और मैं स्वयं था, मिलकर एक राय से यह प्रस्ताव लिया था कि हम सुंदरसिंह भंडारी का विरोध करेंगे।

1976 के दिसंबर महीने में इस पर विचार करने के लिए जब बैठक हुई, तो अटल जी ने जनसंघ और आरएसएस की ओर से एक पत्र लिखा था राष्ट्रीय समिति को, जिसमें उन्होंने यह चर्चा की थी कि कुछ नेताओं में इस पर आपसी रजामंदी थी कि आरएसएस का सवाल नहीं उठाया जा सकता लेकिन कई नेताओं ने मुझे बताया कि इस तरह कि कोई रजामंदी नहीं थी और इस तरह का कोई वचन नहीं दिया गया था, क्योंकि उस समय तो आरएसएस सामने था ही नहीं। जारी