कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न की घटनाओं को स्त्री की कार्य-क्षमता तथा उसके जीवन, उसकी स्वाधीनता के मूल भूत अधिकारों का उल्लंघन, संविधान की धाराओं- 14, 15 और 21 के तहत नागरिक को मिले अधिकारों का स्पष्ट उलंघन माना जाएगा. यौन उत्पीड़न को परिभाषित किया गया और माना गया कि यह लिंग विशिष्ट हिंसा है, जिससे स्त्री की क्षमता के अधिकार का हनन होता है क्योंकि ये एक यौन आधारित व्यवहार हैं. इसके तहत जबरदस्ती शारीरिक स्पर्श तथा इसका प्रस्ताव यौन रंजित टिप्पणियों, अश्लील साहित्य दिखाना, शब्दों अथवा कार्यों द्वारा यौन की घटनाएँ, अश्लील गीत बजाना, अश्लील फबती या ऐसी बात कर आनंद लेना (महिला समिति में) ऐसे सभी व्यवहार जो महिला कर्मचारी के प्रति गलत मंशा को व्यक्त करता है तथा यौणिक उत्पीड़न की परिधि में आता हैं. विशाखा केस के निर्णय के साथ दिए गए दिशा-निर्देशों के तहत महिला कर्मचारी को इन व्यवहारों से संरक्षण देने का आश्वासन दिया गया है.
महिला आयोग के दिशा निर्देश में हर संस्थान में इन समस्याओं के निपटारे के लिए एक शिकायत समिति बनाने का निर्देश दिया गया है, जहां कोई भी महिला कर्मचारी अपनी शिकायत दर्ज कर सकती है. किसी भी संस्थान में ऐसी शिकायत आने पर एक निश्चित समय सीमा के अंदर इस पर करवाई किये जाने का प्रावधान है. विशेष रूप से यह सुनिश्चित किया गया है कि यौन उत्पीड़न की शिकायतों को निपटाते समय पीड़ितों या गवाहों को पीड़ित नहीं किया जाये या उनके साथ कोई भेदभावपूर्ण व्यवहार न किया जाये. साथ ही पीड़िता चाहे तो खुद का स्थानांतरण दूसरी जगह करवा ले या उत्पीड़न करने वाले का स्थानांतरण कर दिया जाए.
शिकायत प्राप्त होने पर नियोक्ता को अनुशासनात्मक प्रक्रिया के तहत करवाई आरम्भ करने का निर्देश दिया गया हैं. ऐसे आचरण कानून के तहत अपराध हों या न हों, अथवा सेवा नियमों का उलंघन हो या न हो, पीड़ित द्वारा की गयी शिकायत के समाधान के लिए नियोक्ता को यह निर्देश दिया गया हैं कि अपनी संस्था, संगठन में एक शिकायत समिति बनाये जो एक शिकायत तंत्र की तरह काम करे और इन शिकायतों का निपटारा एक निर्धारित समय के भीतर करे. यह प्रावधान किया गया है कि शिकायत समिति की अध्यक्ष महिला ही होगी. साथ ही समिति के सदस्यों की संख्या में कम से कम आधी संख्या महिलाओं की होगी. संस्थाओं में समिति पर उपरि दवाब को रोकने के लिए एक तीसरे पक्ष का प्रावधान भी रखा गया हैं. तीसरे पक्ष के रूप में किसी भी गैर सरकारी संस्था के एक व्यक्ति को शामिल किया जाएगा जो महिला समस्याओं से अवगत हो. शिकायत समिति को यह निर्देश दिया गया हैं कि अपनी करवाई के सन्दर्भ में सम्बंधित सरकारी विभाग को एक वार्षिक प्रतिवेदन अवश्य प्रस्तुत करें.
इस सन्दर्भ में श्रमिक संगठनों से यह अपेक्षित है कि वे अपनी बैठकों में इसकी जानकारी अपने सदस्यों को दें. यह निर्देश है कि नियोक्ता-कर्मचारियों की होने वाली बैठकों में इस विषय पर निश्चित रूप से विचार किया जाना चाहिए. ताकि एक ऐसा वातावरण का निर्माण हों जो स्त्रियों को मनोबल प्रदान करें, उनका कार्य स्थल सुरक्षित हों. लोगों की राय स्त्रियों के प्रति अनुकूल हो और स्त्रियां प्रतिष्ठा के साथ निडर होकर कार्य कर सकें.
कामकाजी महिलाओं की लैंगिक समानता की मांग दरअसल मानवाधिकार से जुड़ी मांग है, उसका ही एक हिस्सा है. अतः इन अधिकारों के परिरक्षण और प्रवर्तन के लिए सभी कार्य स्थलों पर उपरोक्त दिशा-निर्देश और मानदंडों का कड़ाई से पालन आज नितांत आवश्यक हो गया है. लेकिन व्यवहारिकता यह है कि जानकारी के अभाव में, समाज के प्रतिष्ठित पितृसतात्मक स्वरूप के कारण, समाज की परम्पराएं स्त्रियों के पक्ष में नहीं हैं. स्त्रियों की समानता की सामाजिक स्वीकारोक्ति न होने के कारण स्त्रियां अपने इन अधिकारों का उपयोग करने से वंचित रह जाती हैं. बढ़ती जागरूकता का स्तर ही हमें इन अधिकारों के उपयोग करने का साहस प्रदान कर पायेगा.
ध्यान देने वाली बात यह है कि कई स्तर पर सफर करते, लड़ाई जीतते 9.12.2013 में, यह दिशा निर्देश एक कानून के रूप में आ चुका है.