Toggle navigation
सामाजिक सरोकार का सामूहिक उपक्रम
नजरिया
समाज
मुद्दा
रपट
कविता
साहित्य
संस्कृति
साक्षात्कार
पत्रकारिता की पाठशाला
इतिहास
वीडियो
बहस
स्मृति शेष
यात्रा संस्मरण
फिल्म
बहस
1975 का घोषित आपातकाल बनाम 2023 का अघोषित आपातकाल
1975 की सेंसरशिप के दौरान मैं मीडिया से नहीं जड़ा था, इसलिए व्यावहारिक अनुभव नहीं है, लेकिन इतिहास और उस दौर के मीडियाकर्मियों से मिली जानकारी के आधार पर इतना जरूर कह सकता हूं कि उन दिनों की तुलना 2023 से करना अनुचित ही नहीं, प्रकारांतर से वर्तमान सत्ता का समर्थन है.
भारतीय सेना राजनीति में दखल क्यों नहीं देती?
सबसे पहले इस संदर्भ में किसी से सुनी एक रोचक बात/घटना, जिसकी प्रामाणिकता के बारे में आश्वश्त नहीं हूं, शेयर कर रहा हूं. आजादी के कुछ दिन बाद प्रधानमंत्री श्री नेहरू तत्कालीन सेनाध्यक्ष जेनरल करियप्पा के दफ्तर गये...
सांई बाबा और दलित प्रश्न!
हाल के दिनों में बहुतेरे दलित लेकिन क्रांतिकारी बुद्धिजीवी, कार्यकर्ता तथा अंबेडकर के परिवार के न्यायपूर्ण संघर्ष से किनारा कर लेने के कारण दलितवाद और अंबेडकरवाद का पूंजीवादी चरित्र उजागर होता जा रहा है।
अग्निवीर या बलि के बकरे
आप को याद होगा जब भारत चीन सीमा पर तनाव चरम पर था सरकार भक्त मीडिया में एक वीडियो खूब दिखाया गया था। इसमें युद्ध में जा रहे कुछ युवा सैनिक रो रहे थे। निश्चय ही ये सैनिक सीमा पर देश भक्ति के कारण नहीं जा रहे थे। जाना उनकी मजबूरी थी। कहा जाता है कि मात्र छह माह की ट्रेनिंग देकर इन्हें मोर्चे पर भेज दिया गया था।
सामूहिकता की शक्ति धर्म के ठेकेदारों ने तोड़ी है!
अनुकूलता और प्रतिकूलताओं के बीच ही इन्सान रास्ता तय करता रहा हैं. हर दौर की अपनी अपनी चुनौतियाँ रही हैं. समाज के लोगों ने उन कठिन परिस्थितियों में भी संघर्ष के रास्ते नहीं छोड़े. समुदायिक और व्यक्तिगत दोनों ही स्तर पर जीवन को सरल बनाने की कोशिश की गयी.
कांग्रेस का अवसान कोई आह्लादकारी परिघटना नहीं होगी
कांग्रेस का अवसान, जिसका कयास समय समय पर लगाया जाता रहा है और अभी पांच रा’ज्यों के चुनाव नतीजों के बाद और जोर से लगने लगा है, मेरी समझ से कोई आह्लादकारी परिघटना नहीं होगी।
’हिजाब’ के बहाने
एक वैचारिक समूह (वाहिनी मित्र मिलन), धर्मनिरपेक्षता के प्रति जिसकी निष्ठा असंदिग्ध है, पर कर्नाटक के हिजाब विवाद पर हुई चर्चा के क्रम में वाहिनी समूह पर दो मुसलिम साथियों ने मुस्लिम संकीर्णता और इसे बढ़ावा दे रहे एक संगठन का मुद्दा उठाया है.
‘वाहिनी मित्र मिलन’ के स्वरूप को लेकर मतभेद, भ्रांतियां
मुझे ऐसा लगता है कि वाहिनी मित्र मिलन के बारे में, उसके उद्देश्य के बारे में, उसके स्वरूप के बारे में हमारे, यानी साथियों के बीच कुछ मतभेद है। या कहें कि सभी एक तरह से नहीं सोचते। चूंकि कभी खुल कर बात नहीं हुई, तो स्पष्टता नहीं है।
वाहिनी के लोग ही जेपी के लोग
अगर यह कहूंकि आज वाहिनी के लोग ही जेपी के लोग हैं, तो गलत नहीं होगा. तब हमारे सामने सवाल है कि जब वाहिनी के लोग नहीं होंगे, तो जेपी के लोग कौन होंगे! हममे से अधिकतर 60 पार कर चुके हैं, तब हम क्या करें कि हमारे बाद भी जेपी के लोग रहें...
हिंदू-मुसलिम प्रेम/विवाह में असंतुलन : माजरा/सच क्या है?
देश में हिंदू आबादी करीब 85% और मुसलिम आबादी मात्र करीब 15% होने के बावजूद हिंदू-मुसलिम विवाह के अनुपात में बहुत अंतर है. क्यों? संकीर्ण हिंदूवादी इसे मुसलमानों की साजिश मानते/कहते हैं. यह कि मुसलिम युवक एक दुष्ट योजना के तहत 'भोली-भाली' हिंदू युवतियों को प्रेम जाल में फांसते हैं,...
कांग्रेस से भाजपा का विकल्प बनने की उम्मीद न करें
तीन बातों के लिए बिहार का चुनाव इतिहास में दर्ज किया जाएगा. पहला तो तेजस्वी यादव का इस चुनाव में अप्रत्याशित रूप से एक मजबूत नेता के रूप से उभकर सामने आना. तीन महीना पहले तक लोग यह मानकर चल रहे थे कि तेजस्वी, नीतीश जी के नेतृत्व वाले गठबंधन के मुकाबले में खड़े भी नहीं हो पाएंगे.
कहां अंत होगा इस बिखराव का - खूंटी में सरना धर्म तीन भाग में बंटा
अब ये तीन तरह के सरना धर्म मानने वाले लोग आपस में ही एक दूसरे का दूश्मन बन गये हैं। दुख तकलीफ में शादी विवाह में काम धंधा में एक दूसरे को सहायता करना भी प्रतिबंधित है।
स्टेन की गिरफ्तारी : केंद्र का मसला या राज्य का मसला!
कुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और झारखंड सरकार के मंत्री रामेश्वर उरांव ने स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी की निंदा की है. हेमंत सोरेन ने तो स्पष्ट शब्दों में कहा है कि केंद्र सरकार गरीबो-वंचितों के पक्ष में आवाज उठाने वालों की आवाज बंद करना चाहती है.
हिंसा पर विमर्श : ‘जैसे को तैसा’ धर्म सम्मत है?
गांधी का मत है कि हिंसा ‘पशुओं’ का नियम है। पशु की आत्मा ‘सुप्तावस्था’ में होती है। वह केवल ‘शारीरिक शक्ति’ के नियम को ही जानता है। मानव की गरिमा एक उच्चतर नियम- आत्मा के बल का नियम- के पालन की अपेक्षा करती है। क्रूरता का जवाब क्रूरता से देना अपने नैतिक और बौद्धिक दिवालियापन को स्वीकार करना है और यह केवल एक दुश्चक्र को ही जन्म दे सकता है।
संताल परिवार में महिलाओं की स्थिति
आजीवन एक ही इन्सान के साथ रहने की परम्परा स्त्रियों के लिए तब तक घातक ही है जब तक पुरुष औरतों को इन्सान न समझ ले. परिवार एक स्त्री के शोषण का मुख्य गढ़ होता है. जब तक परिवार में स्त्री को सम्मान जनक स्थान नहीं मिल जाता तब तक परिवार के टूटते रहने की परम्परा खत्म नहीं होनी चाहिए.
टैबुओं (निषेधों) से दोयम दर्जे का बनती है संताल महिलाओं की स्थिति!
टैबू (निषेध), जिसका अर्थ होता है किसी खास काम के लिए व्यक्ति को मना करना या खास काम को अलग तरीके से करने की हिदायत देना! इन निषेधों का पालन आदिवासी समाज में सख्ती से किया जाता है, खासकर महिलाओं से संबंधित निषेध. इन निषेधों का पालन अगर कोई नहीं करता है तो परंपरागत पंच उस व्यक्ति को साधारण से लेकर गंभीर दंड देते हैं.
क्या कस्टमरी लॉ के तहत बलात्कारी को आर्थिक दंड दे कर छोड़ना सही है!
'लजाव मराव' शब्द मेरे दिमाग से लगभग खत्म हो चुका था और मुझे यही लगता था कि आजकल इसका कहीं कोई अस्तित्व नहीं है. पर इससे सम्बंधित एक आर्टिकल पढ़ने को मिला जिसमें 'लजाव मराव' को लगभग बेहतर समाधान बताया गया था.
कन्हैया को लेकर एक अधूरी बहस
विनोद कुमार ने फेसबुक पर कन्हैया को लेकर एक छोटी सी टिप्पणी की. इसके जवाब में तरह—तरह की प्रतिक्रियायें आयी. हम उन्हें बहस कालम में रख रहे हैं. इस बहस को आप चाहें तो और आगे बढ़ा सकते हैं. कुल मिला कर नतीजा यह कि कन्हैया को भाजपा विरोधी गठबंधन में शामिल होना चाहिए और यह जिम्मेदारी गठबंधन के नेताओं की है.
"एक देश-एक चुनाव" का नारा एक कुटिल चाल
केंद्र सरकार के सालाना बजट के एक लाख रुपये में एक बड़े राज्य के चुनाव का खर्च केवल 10 (दस) रुपया है. पाँच साल के चुनाव में यह अनुपात बजट के एक लाख रुपये में केवल 2 रुपया है.
बंदे मातरम कहना ही होगा!
भाजपा नेता केंद्रीय मंत्री और बेगूसराय में भाजपा प्रत्याशी गिरिराज सिंह ने भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के समने यह उद्गार व्यक्त किया है कि अगर मुसलमानों को शव दफनाने के लिए जमीन चाहिए तो उन्हें 'वंदे मातरम' कहना ही होगा.
कन्हैया थोड़ा सब्र करता, तो और बड़ा बन जाता
कोई शक नहीं कि सत्ता प्रतिष्ठान द्वारा प्रताड़ित कन्हैया कुमार आज प्रतिरोध और बदलाव की चाहत का एक प्रखर चमकदार जान पहचाना चेहरा है. तमाम प्रतिकूलताओं के बावजूद कन्हैया की आवाज संसद में गूंजे, यह बहुतों के साथ मुझे भी अच्छा लगेगा.
आदिवासीयत क्या है?
पिछले कुछ महीनों से आदिवासीयत को लेकर ऐसी बहस चल रही है जो पहले कभी नहीं चली. आदिवासी समाज को लेकर तरह-तरह के भ्रम, अतिरंजित बातें, उस समाज के रीति रिवाज और परंपराओं को विकृत कर पेश करना तो गैर आदिवासी द्वारा चलता रहा है. लेकिन अब तो आदिवासी समाज के कुछ नेता ही अपनी क्षुद्र राजनीति के लिए इस काम में लग गये हैं.
आदिवासी एकता क्यों चाहिए?
गनी मांझी के इस पोस्ट पर दस टिप्पणियां आई, माकूल जवाब नहीं. लेकिन इस सवाल का जवाब आना चाहिए, वरना आदिवासी एकता की तमाम बातें निर्रथक होकर रह जायेंगी.
आदिवासी, ईसाई और हिंदू समाज
संस्कृति के नाम पर आदिवासी लोगो मे भेदभाव क्यू करते है? बहुत ही सरल सी बात है, जैसे RSS या BHP जैसे कट्टर सोचवाले कहते है कि सिर्फ हिन्दू धर्म को मानने वाला ही हिंदुस्तानी है, ठीक वैसे ही इनलोगो की सोच होती है, जो सरना धर्म को मानते है सिर्फ वही आदिवासी है।
सरना, ईसाई और हिंदू समाज
क्या आपको लगता है कि यह कट्टरता का प्रगटीकरण किसी दूसरे (यहाँ आरएसएस कह लीजिए) के द्वारा प्रेरित है या यह (आदिवासी) ईसाई कट्टरता के प्रतिक्रिया का प्रफूस्टन है? आखिर क्या है इसका मनोविज्ञानिक कारण और कारक?